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নালীসৰিী অম্বিা जयवर्मा पचम राजा बना। इस समय हिंदूधर्म ने पुनः प्रधानता प्राप्त की। १११२ ई० में सूर्यवर्मा द्वितीय राजा बना। अंकोरवतु का ससारप्रसिद्ध वैष्णव मंदिर इसी के राज्यकाल में बनाया गया। इस मंदिर की चित्रशालाओं के चित्र जगविख्यात हैं। अधिकांश चित्र वैष्णव हैं, किंतु कुछ शैव भी हैं। ऊँचाई में यह मंदिर जावा के बोरोबुदुर मंदिर से भी ८० फीट अधिक ऊँचा है। तेरहवीं शताब्दि से कबुज की शक्ति शनैः शनैः क्षीण होने लगी। इस दुबलता का कारण स्याम और चपा के सतत आक्रमण थे। १७वों शताब्दि में योरुपियन लोगों ने भी अपना आधिपत्य जमाना शुरू किया। इसी बीच कबुज पर प्रभुत्व स्थापना के लिये स्याम और अनाम में संघर्ष हुआ और १८४६ ई० में कंबुज पर स्याम का आधिपत्य स्थापित हो गया। तब से बौद्धधर्म का प्रसार हुआ। १८८७ ई० में स्याम और फ्रांस की सधि के अनुसार कबुज पर फ्रांस का अधिकार स्वीकृत कर लिया गया। इस समय यहाँ का राजा और जनता दोनों बौद्ध हैं, किंतु वर्तमान क'बोडिया प्राचीन कंबुज से बहुत छोटा है, क्योंकि इसके कुछ प्रदेश १८८७ में स्याम ने ले लिए थे।
कबुज पर भारतीय संस्कृति का प्रभाव इतना अधिक पड़ा कि राजा और कुलीन लोगों के नाम संस्कृतमय रखे गए। राजा लोग महाहोम, लक्षहोम, कोटिहोम आदि यज्ञ करते थे। रामायण, महाभारत और पुराणों का प्रखंड पाठ होता था। संस्कृत में उत्कीर्ण लेख इस बात को प्रदर्शित करते हैं कि वहाँ संस्कृत का बहुत प्रचार था। शासन-व्यवस्था राजतंत्र थी। प्रधान मंत्री को राजमहामात्य कहते थे। मुख्य सेनापति को महासेनापति कहा जाता था। राजगुरु भी होते थे। कबुज का प्रधान धर्म शैव था। राजाओं के लेखों में शिवस्तुति विशेष रूप से उल्लिखित है। शिव-पूजा, शिवलिंग और शिवमूर्ति दोनों रूपों में की जाती थी, परंतु लिंगपूजा का प्रचार अधिक था। शिव और विष्णु ( हरिहर ) की इकट्ठी पूजा का भी प्रचार था। शैवों और वैष्णवों में परस्पर विवाद न होकर मेल था। शिव के साथ शिव-पत्नी की पूजा भी होती थी। शिव के बाद दूसरा स्थान विष्णु को प्राप्त था, परंतु वैष्णवों की संख्या बहुत कम थी। भारत की तरह कबुज में भी ब्रह्मा की पूजा
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