Book Title: Vikram Pushpanjali
Author(s): Kalidas Mahakavi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 231
________________ भारत और अन्य देशों का पारस्परिक संबंध २२१ व्यापारियों के साहसिक कृत्यों से भरपूर हैं। व्यापार के कारण यहाँ के लोग नौका-नयन में बहुत निपुण हो गए थे। 'सामुद्रिकाः व्यापारिणः महासमुद्रं प्रवहणैस्तरन्ति' चाणक्य के अर्थशास्त्र का यह वाक्य चंद्रगुप्तकालीन जलसेना का वर्णन कर रहा है। आंध्रों और पल्लवों के सिक्कों पर दो मस्तूलवाली नौकाओं के चित्र तथा साँची, अर्जता, अगनाथ और बोराबुदूर के मंदिरों पर नौकाओं और समुद्रीय जहाजों की प्रतिमाएँ जलसेना की महत्ता का स्पष्ट वर्णन कर रही हैं। नौ-संचालन में प्रवीण भारतीयों ने व्यापार तथा साम्राज्यविस्तार की दृष्टि से नवीन प्रदेशों को ढूंढना प्रारंभ किया। जिन लोगों ने इस दिशा में पग बढ़ाया उन्होंने समुद्र और स्थल-दोन मार्गों का आश्रय लिया। उन दिनों व्यापारी लोग बनारस और पटना से, जल और स्थल दोनों मार्गों से, बंगाल जाते और वहाँ से ताम्रलिप्ति (वर्तमान तामलूकः) के बदरगाह से सुदूरपूर्व की ओर प्रस्थान करते थे। मछलीपत्तन के समीप तीन बदरगाह थे। वहाँ से भी व्यापारी लोग पूर्वीय द्वीपसमूह की ओर रवाना होते थे। जावा, सुमात्रा, बालि, बोर्नियो आदि द्वीपों में भारत का विस्तार जल-मार्ग से ही हुआ था और बर्मा, स्याम, चंपा और कंबुन में उपनिवेश बसानेवाले भारतीयों ने अधिकतर स्थल-मार्ग और साधारणतया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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