Book Title: Vikram Pushpanjali
Author(s): Kalidas Mahakavi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 228
________________ २१८ नागरीप्रचारिणी पत्रिका हिंदू प्रचारक अति उत्तग ऊर्मिमालाओं से क्रोडाएँ करते हुए अरबसागर के विशाल वक्षःस्थल को चीरकर हजरत मुहम्मद के अनुयायियों में भारतीय संस्कृति के प्रति भव्य भावनाएँ उत्पन्न कर रहे थे। अरबों में भारतीय संस्कृति. प्रवेश के दो कारण हैं। अरब व्यापारी और परामका वश के मंत्री। अरब और भारत दो ऐसे देश हैं जो एक समुद्र द्वारा परस्पर मिले हुए हैं। अरब के तीन ओर समुद्र है। अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण हो हम इसे अत्यंत प्राचीन काल से व्यापार में संलग्न देखते हैं। हजरत यूसुफ के समय से वास्कोडिगामा तक अरब लोग भारतीय सामान को विदेशों में बेचते रहे। व्यापारी होने के कारण अरबों को भारत के विषय में अच्छा परिचय था। यही कारण है कि जब खलीफाओं को वैद्यों और पंडितों को आवश्यकता हुई तो इन व्यापारियों द्वारा उनका परिचय मिला और वे अरब ले जाए गए। बरामका वश का मंत्रिपद पर आरूढ़ होना भारतीय संस्कृति-प्रपार में बहुत सहायक हुआ। ये लोग पहले बौद्ध थे। यही कारण है कि मुसलमान हो जाने पर भी इनका सांस्कृतिक प्रेम नहीं छूटा। अब्बासी खलीफाओं के समय इन मंत्रियों की प्रेरणा पर भारत के बहुत से पंडित बगदाद पहुँचे। इन्होंने संस्कृत प्रथों का अरबी में अनुवाद किया। इन पंडितों के नाम अरबी में जाकर इतने बिगड़ चुके हैं कि उनके वास्तविक रूप को ढूँद निकालना कठिन है। महाभारत, चाणक्यनीति, पचतंत्र आदि प्रथ अनूदित किए गए। बोजासफ (बोधिसत्त्व ) नामक पुस्तक इस्लाम के एक संप्रदाय का धर्मग्रंथ है। इस पुस्तक में बुद्ध के जन्म, शिक्षा आदि का वर्णन है। १ से ९ तक के अंक लिखने की विधि अरबों ने भारत से सीखी। इसी लिये वे इन अंकों को 'हिदसा' कहते हैं। आगे चलकर अरबों ने योरुप भर में इन अंकों का प्रचार किया। इसी से योरुप में इन्हें 'अरबी अंक' कहा जाता है। ७७१ ई० में 'बृहस्पति सिद्धांत' नामक ज्योतिष प्रथ 'अस्सिद हिंद' नाम से अनूदित किया गया। इसके बाद आर्यभट्ट, अरजबद नाम से और खंडनखाधक, अरक द नाम से अनुदित किए गए। आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त के प्रथ भी भाषांतरित किए गए थे। अरबों ने इस ज्योतिष विद्या को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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