________________
उपायनपर्व का एक अध्ययन ज्यौ-(४८॥३) इनके बारे में विशेष पता नहीं, पर ये खशों के पास रहते थे। यह जानने योग्य है कि अलमोड़ा में जोहार नामक तहसील है (अलमोड़ा गजे०, पृ० २५९)। जोहर नाम की व्युत्पत्ति के विषय में पता नहीं। शायद यहाँ प्राचीन ज्यौ लोग आकर रहे हैं, पर यह अनुमान मात्र है।
दीर्घवेणु-(४८॥३) लगता है कि ये फिरंदर जाति के लोग थे; इनके संबंध में और कुछ नहीं कहा जा सकता।
पशुप-(४८१३) ये भी फिरदर जाति के थे, और शायद किरगिज लोगों के पूर्वपुरुष रहे हों।
कुणिंद-(४८।३) महाभारत और दूसरे ग्रंथों से पता चलता है कि कुणिंद बहुत दूर दूर तक फैले हुए थे। हरद्वार के पास तराई प्रदेश में भी (भरण्य० १४१, २५) इनका उल्लेख है। इस प्रदेश का राजा सुबाहु कहा गया है। इसके राज्य में हाथी-घोड़ों तथा बबर जातियों की भरमार थी, क्योंकि यहाँ कुणिंदों के साथ किरातों और तंगणों का भी उल्लेख आया है।
- भांडारकार ई० द्वारा संपादित पर्वो में संपादकों ने कुणिंद पाठ को ठीक माना है, पर कुलिंद पाठ भी पाठभेदों में दिया है (सभा० २३, १३, ४८, ३; अरण्य० १४१, २५)। दिग्विजयपर्व में एक जगह ( २३, १४) कुलिंद और पुलिंद का हेर-फेर भी दिया है। लेवी के अनुसार कुलिंद-पुलिंद एक ही शब्द हैं ( जे० ए० १९२१, पृ० ३०)।।
- कुणिंदों के सिक्के भी मिले हैं (एलन, वही पृ० १०१)। इन सिक्कों पर कुणिंद शब्द आता है। ये सिक्के हमीरपुर, लुधियाना, ज्वालामुखी तथा सहारनपुर जिलों में पाए गए हैं। इनसे पता चलता है कि कुणिंद शिवालिक पर्वत पर जमुना और सतलज तथा व्यास और सतलज के उपरले हिस्सों पर स्थित थे।
तंगण-(४८।३) तंगणों का उल्लेख किरातों के साथ सुबाहु के राज्य में आया है (अरण्य० २१, २४, २५)। एक दूसरी जगह इनकी गणना पश्चिम के लोगों में की गई है, तथा इनका संबंध जागुड़, रमठ, स्त्रोराज्य और मुंडों के साथ किया गया है। टाल्मी (७, ११, १३) गंगोह राज्य का वर्णन
करता है। इसकी स्थिति गंगा के पूर्व से होती हुई उत्तर तक थी, और उस . राज्य से सर्वोस नदी बहती थी। सेंट मार्टिन ने गंगणोइ का शुद्ध पाठ तंगनोई
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com