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भारत और अन्य देशों का पारस्परिक संबंध २०५ दोनों देशों का वह सांस्कृतिक संबंध आज भी स्थित है और पिछले कुछ वर्षो में वह दृढ़तर हुआ है।
___ कुस्तन (खोतन) तिब्बती और चीनी विवरणों में खोतन और भारत के सांस्कृतिक संबंध की अनेक मनोरंजक कथाएँ संगृहीत हैं। यद्यपि ये कथानक परस्पर मेल नहीं खाते तथापि इस बात में समता है कि इस देश का नाम कुस्तन ( कुभूमि है स्तन जिसका) किसी ऐसे राजकुमार के नाम पर पड़ा जिसे गृह-निर्वासन के कारण भूमि के सहारे पलना पड़ा। वह राजकुमार कौन था, इस विषय में कथानक एकमत नहीं हैं। इन विवरणों के अनुसार ५८ ई० पू० में विजयसंभव खोतन का राजा हुआ। यह कण्व राजा भूमिमित्र का समकालीन था। राज्याभिषेक के पांचवें वर्ष काश्मीर से अर्हत् वैरोचन नामक भिक्षु खोतन पहुँचा। इसके उपदेशों से प्रभावित होकर राजा ने बौद्धधर्म की दीक्षा ली। इस प्रकार वैरोचन ही वह प्रथम प्रचारक था जिसने खोतन में महायान धर्म को प्रचलित किया था। विजयसंभव के बाद सात राजाओं तक बौद्धधर्म की कोई विशेष उन्नति नहीं हुई। पाठवाँ राजा विजयवीर्य था। इसके समय विहारों और चैत्यों का निर्माण हुआ। इसके बाद विजयजय और विजयधर्म के समय बौद्धधर्म की विशेष उन्नति हुई। दोनों देशों के बीच पंडितों का
आवागमन हुआ। राजा विजयकीर्ति के समय श्वेत हूणों के आक्रमण हुए जिसके परिणाम स्वरूप बौद्धधर्म को बहुत क्षति उठानी पड़ी। बहुत से विहार जला दिए गए और नए बनने से रोक दिए गए। १००० ईसवी में तुर्क आक्रांता यूसुफ कादरखाँ ने खोतन पर आक्रमण किया और उसे जीत लिया। इस समय जनता पर भयंकर अत्याचार किए गए। भिक्षु लोग देश छोड़कर तिब्बत भाग गए। बौद्धधर्म की अवनति होने लगी। १००० से १५२५ ई० तक तुर्को का शासन रहा। ये लोग मुसलमान थे अतः अब इस्लाम का उत्कर्ष प्रारंभ हुआ। ११२५ से १२१८ तक का इतिहास अज्ञात है। १२१८ में खोतन, चंगेजखाँ के मंगोल साम्राज्य का हिस्सा बन गया। इसके उपरांत कई सौ वर्षों तक यह इस्लामी क्रियाशीलता का प्रधान केंद्र
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