Book Title: Vikram Pushpanjali
Author(s): Kalidas Mahakavi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 218
________________ ___ नागरीप्रचारिणी पत्रिका नाम ही महायान रख दिया। इस प्रकार भारतीय पंडितों का एक के बाद दूसरा दल चीन पहुँचता रहा। इस समय चीन में भारतीयों की संख्या निरंतर बढ़ रही थी। तत्कालीन चीनी विवरणों से ज्ञात होता है कि छठी शताब्दि के प्रारंभ में तीन हजार से भी अधिक भारतीय चीन में निवास कर रहे थे। इनके निवासार्थ चीनी राजाओं ने कितने ही सुंदर विहारों का निर्माण कराया था। इसी समय स्त्रियों को भी संघ में प्रविष्ट किया गया। छठी शताब्दि में जो प्रचारक चीन गए थे उनमें से बोधिधर्म, परमार्थ, जिनगुप्त, यशोगुप्त और ज्ञानभद्र प्रमुख थे। ६२९ ई० में प्रसिद्ध चीनी यात्री हन-त्साङ भारत आया। इसने ५ वर्ष तक नालंदा विश्वविद्यालय में रहकर संस्कृत और बौद्ध साहित्य का अध्ययन किया। ६४१ ई० में समाट हर्षवर्धन ने एक दूतमंडल चीन भेजा। इसके प्रत्युत्तर में ६५७ ई० में एक चीनी दूतमंडल भारत आया, परंतु इसके भारत पहुँचने तक हर्षवर्धन की मृत्यु हो चुकी थी। सातवीं शताब्दि, चीनी इतिहास में साहित्यिक दृष्टि से सुवर्णकाल समझी जाती है, परंतु इस शताब्दि में बहुत कम पंडित चीन गए; क्योंकि इस समय भारतीय पंडितों का प्रवाह तिब्बत की ओर बह रहा था। आठवीं शताब्दि में चीनी पंडितों ने भारतीय पंडितों से ज्योतिष ग्रंथ पढ़कर हिंदू पंचांग के आधार पर अपना तिथिक्रम निश्चित किया। इस सदी के आरंभ में अमोघवन चीन गया। अपने समय का यह सबसे बड़ा अनुवादक था। कुमारजीव, जिनगुप्त और बोधिरुचि की तरह इसने भी अनुवादों द्वारा भारतीय संस्कृति को फैलाने का यत्न किया। इसने तंत्रशास्त्र का भी प्रचार किया। अमोघवन ने लगभग ४१ तांत्रिक ग्रंथों का चीनी भाषा में अनुवाद किया। अमोघवन के साथ बड़े बड़े पंडितों का चीन जाना समाप्त हो गया। इसके बाद डेढ़ सौ वर्षों तक बहुत कम पंडित चीन गए। ९५१ ई० में मंजुश्री और ९७३ में धर्मदेव चीन पहुँचे। धर्मदेव ने अनुवादकों का एक संघ स्थापित किया। संस्कृत के विद्वान् अनेक चीनी पंडित भी इसके सदस्य थे। इस संघ द्वारा बहुत से संस्कृत ग्रंथों का चीनी भाषा में उल्था किया गया। अंतिम भारतीय पंडित जो चीन गया उसका नाम ज्ञानश्री था। यह १०५३ ई० में चीन पहुँचा था। इस प्रकार एक हजार वर्ष से भी अधिक समय तक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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