Book Title: Vikram Pushpanjali
Author(s): Kalidas Mahakavi
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 225
________________ भारत और अन्य देशों का पारस्परिक संबंध २१५ आचार्य शांतिरक्षित और पद्मसंभव तिब्बत गए। ७४९ ई० में पद्मसंभव ने उदंतपुरी विश्वविद्यालय के अनुकरण पर सम्-ये नामक विहार बनवाया। यह आज भी विद्यमान है। आर्य्यदेव, बुद्धकीति, कुमारश्री, कर्णपति, कर्णश्री, सूर्यध्वज, सुमतिसेन आदि पंडित भी तिब्बत गए। ये सब संस्कृत ग्रंथों का तिब्बती भाषा में अनुवाद करने में संलग्न थे। शांतिरक्षित की मृत्यु हो जाने पर प्राचार्य कमलशील को तिब्बत में आमंत्रित किया गया। इन्होंने शास्त्रार्थ में चीनी पंडितों को परास्त किया। इससे इनका प्रभाव बहुत बढ़ गया। इस प्रभाव को चीनी पंडित न सह सके। परिणामत: चीनी पंडितों ने कसाई भेजकर कमलशील का वध करवा डाला। तिब्बतियों ने उनका शरीर मसाले लगाकर आज तक सुरक्षित कर रखा है। रलपाचन् का समय तिब्बती इतिहास में स्वर्णयुग के नाम से पुकारा जाता है। इस काल में बौद्धधर्म की बहुत उन्नति हुई। तिब्बती भाषा का कोश तैयार किया गया था, जिसमें संस्कृत के पारिभाषिक शब्दों को विस्तारपूर्वक समझाया गया था। भारतीय आदर्श पर तिब्बती भार, नाप तथा मुद्राएँ निश्चित की गई। संस्कृत ग्रंथों को अनूदित करने के लिये भारत से जिनमित्र, शीलेंद्रबोधि, दानशील, प्रज्ञावर्मन्, सुरेंद्रबोधि श्रादि पंडित बुलाए गए। अनेक तिब्बती युवक भारतीय धर्म और भाषा का अध्ययन करने भारत आए। इन युवकों ने स्वदेश लौटकर सपूर्ण त्रिपिटक तिब्बती भाषा में अनूदित कर दिया। रल्पाचन की मृत्यु के पश्चात् तिब्बत का वातावरण बौद्धधर्म के प्रति विषपूर्ण हो गया। इस समय भिक्षुओं पर भयंकर अत्याचार किए गए। उन्हें प्राचार-विरुद्ध कार्य करने को बाधित किया गया। मंदिरों के द्वार दीवारें खड़ी करके बंद कर दिए गए। लगभग सौ वर्ष तक तिब्बत की यही दशा रही। भारतीय पंडित देश से निकाल दिए गए। अनुवादक अन्य देशों में भाग गए। तात्पर्य यह है कि इस समय बौद्धधर्म तिब्बत में अंतिम सांस ले रहा था। लगभग एक सदी बाद अव्यवस्था और असहिष्णुता की यह दशा शनैः शनैः परिवर्तित होने लगी। सभी ओर बौद्धधर्म का पुनरुत्थान करने की हल्की सी चर्चा उठ खड़ी हुई। परिस्थितियाँ परिवर्तित हो जाने से भारत और तिब्बत में आवागमन पुन: प्रारंभ हो गया। तिब्बती भिक्षु धार्मिक शिक्षा के लिये भारत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250