Book Title: Vikram Pushpanjali
Author(s): Kalidas Mahakavi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 223
________________ २१३ भारत और अन्य देशों का पारस्परिक संबंध प्रसिद्ध है। इस कलह में मिनामोतो वंश सफल हुआ । इस वंश के लोगों शगुन (सुप्रिम मिलिटरी चीफ) की उपाधि धारण कर शासन किया । शोगुनों की जापान में वही स्थिति थी जो भारतीय इतिहास में पेशवाओं की थी । योरितोमो ने अपनी विजय का कारण बौद्धधर्म समझकर कामाकुरा में अमि ताभ (बुद्ध) की एक संसार - प्रसिद्ध विशाल मूर्ति स्थापित की । इधर जब राजनीतिक उथल-पुथल मची हुई थी तब जापान में बड़े बड़े महात्माओं का आविर्भाव हो रहा था । इन्होंने अपने ऊँचे व्यक्तित्व द्वारा जनता का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया । इन महात्माओं के नाम थे होनेन्, शिन्न, निचिरेन और दो जेन् । इनके नाम से जापान में बौद्ध संप्रदाय भी प्रवर्तित हुए । १३३८ से १५७३ तक का काल राजनीतिक संघर्षों तथा धार्मिक उन्माद का काल है । इस अराजकता का अंत तीन राजनीतिज्ञों – नोबुनागा, हिदयोशि और इयसु ने किया ( १५७३ से १८६८ तक ) । इस काल में भिक्षुओं ने पारस्परिक झगड़े त्यागकर शिक्षा की ओर ध्यान दिया । बौद्ध विहार सैनिक Draftयाँ न रहकर शिक्षाकेंद्र बन गए। उनमें लड़ाकू प्रचारकों के स्थान पर बौद्ध विद्वान् पैदा होने लगे । सर्वत्र धार्मिक शांति के साथ कला का भी अभ्युदय हुआ । १८६८ से १९४० तक का समय " मेइजी - युग" कहाता है । १८६९ में राजा मेइजी ने एक घोषणा की। इसमें कौंसिल-निर्माण, सामंत-प्रथा का नाश और विदेशों से ज्ञान प्राप्त करने का उल्लेख किया गया था । इसे नए जापान का मैग्नाचार्टा कहा जाता है । इस समय तोक्यो को राजधानी बनाया गया । विज्ञान का तीव्रता से प्रसार हुआ और लोग पाश्चात्य जगत् की उन्नति का कारण ईसाइयत को मानकर उसकी ओर आकृष्ट होने लगे । परिणामतः समूचे राष्ट्र में इसकी प्रतिक्रिया पाश्चात्य विचारधारा छोड़ दो, राष्ट्रीय विचारों को अपनाओ, जापान जापानियों का है ये विचार इस युग के पथप्रदर्शक बने । इस आंदोलन के • कर्णधार बौद्ध लोग थे जिन पर पाश्चात्य संस्कृति का रंग न चढ़ा था । इस दोलन ने जापानियों के पश्चिम की ओर झुकते हुए मनों को स्वदेश की ओर खींच लाने में बड़ी सहायता की। साथ ही लोगों में यह भी विश्वास उत्पन्न हुआ कि बौद्धधर्म भूतकाल का भग्नावशेष ही नहीं अपितु, राष्ट्र Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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