Book Title: Vikram Pushpanjali
Author(s): Kalidas Mahakavi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 219
________________ भारत और अन्य देशों का पारस्परिक संबंध २०९ भारतीय पंडित चीन जाते रहे। ये लोग अपने साथ जहाँ बौद्धधर्म को ले गए वहाँ संस्कृत साहित्य, भारतीय कला और संस्कृति को भी साथ ले गए। भारतीय पंडितों का यह कार्य संसार के इतिहास में अपूर्व स्थान रखता है। जिस उत्साह, त्याग और स्थिरता के साथ भारतीय पंडितों ने कार्य किया उसका दूसरा उदाहरण मिलना कठिन है। भारत पर मुसलमानों के आक्रमणों ने इस प्रगति में बाधा डाली। जब मंगोल समाट् कुबलेईखाँ ने अनुवादों की चाह से भारत की ओर दृष्टि डाली तो उसे निराश होना पड़ा। कारण यह था कि इस्लामी सेनाओं ने नालंदा, विक्रमशिला श्रादि शिक्षा और संस्कृति के केंद्रों को स्वाहा कर दिया था। जिन शिक्षणालयों में शिक्षा प्राप्त करके कुमारजीव, बोधिरुचि, परमार्थ और जिनगुप्त सदृश महापंडितों ने चीन में सांस्कृतिक प्रसार किया था वे अब भस्म हो चुके थे। हन्-साङ् और ईत्सिंग के विद्यामंदिरों का अस्तित्व अब निःशेष हो चुका था। १२८० से १३६७ तक चीन पर मंगोलों का आधिपत्य रहा। इनकी रुचि बौद्वधर्म की ओर अधिक थी। इससे इनके शासनकाल में बौद्वधर्म की विशेष उन्नति हुई। १३६८ से १६४४ तक मिङ् वंश ने शासन किया। ये लोग भी बौद्धधर्म के सहायक रहे। इसके बाद मंचू लोग आए। ये भी बुद्ध के अगाध भक्त थे। १९१२ में चीन में क्रांति होकर प्रजातंत्र की स्थापना हुई। यद्यपि विधान में परिवर्तन हो जाने से पहले डा० सनयातसेन राष्ट्रपति चुने गए और आज मार्शल चाङ काई शेक चीन के राष्ट्रपति हैं और ये ईसाई हैं, तथापि प्रजा के धर्म में कोई परिवर्तन नहीं पाया है। यह ठीक है कि चीनी बौद्धधर्म पर स्थानीय रंग बहुत चढ़ गया है, फिर भी वह मूलतः उन शिक्षाओं और क्रियाओं पर आश्रित है जिनका प्रचार भारतीय पंडितों ने किया था। भारत की भाँति चीन में भी इतनी उथल-पुथल होने पर भी आज तक कला की सहस्रों उच्चतम कृतियाँ विद्यमान हैं जिन पर भारतीय संस्कृति की अमिट छाप साफ दिखाई देती है। पिछली कुछ सदियों से पराधीन होने के कारण भारत का चीन से संबंध टूट-सा गया था, किंतु अर्वाचीन काल में दोनों देशों पर आई हुई विपत्ति के कारण वह पुरातन सबंध पुन: दृढ़ हो गया है। आज भारतीय परिचारक-मंडल चीन जाता है और चीनी मंडल भारत का पर्यटन करते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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