________________
२०४
नागरीप्रचारिणी पत्रिका
राजाओं में सबसे प्रमुख एलार था । इसकी न्यायप्रियता और निरपेक्षता की अनेक कथाएँ उपलब्ध होती हैं । दुष्टप्रामणी ने एलार को कत्ल कर स्वयं राजगद्दी प्राप्त की । अब पुनः सिहली राजाओं का शासन आरंभ हुआ । इस काल में बौद्ध धर्म ने उन्नति की । इस युग का प्रसिद्ध राजा महासेन था। यह समुद्रगुप्त का समकालीन था। महासेन के बाद श्री मेघवर्ण श्रया । इसे महावंश में द्वितीय मांधाता कहा गया है । अनेक विहारों और मंदिरों का इस समय निर्माण हुआ । इसी के समय कलिंग का एक राजकुमार और राजकुमारी बुद्ध का दाँत लेकर राजसभा में उपस्थित हुए । इसे स्वर्णपात्र में रखकर ऊपर से मंदिर चिना गया। कांडि के मालिगाँव मंदिर में जो दाँत विद्यमान है, उसके विषय में कहा जाता है कि वह यही है । इसके बाद महानाम राजा हुआ । इसी के समय बुद्धघोष नामक भारतीय पंडित लंका गया । इसने अट्ठकथाओं का पाली में अनुवाद किया ।
१०६५ ई० पीछे बौद्ध
बुलाए गए। आक्रमण किया। इस समय पूर्ण रूप से निकाले नहीं जा डच लोग लंका पहुँचे ।
इसके बाद का इतिहास पारस्परिक झगड़ों का इतिहास है । इस व्यवस्था में निर्बल पक्ष ने अपनी सहायता के लिये तामिल राजाओं को आमंत्रित किया। इन राजाओं के समय हिंदू धर्म का बहुत प्रसार हुआ । में विजयबाहु ने समस्त देश को जीतकर पुनः व्यवस्था स्थापित की। संघ जो विकृति श्रा गई थी उसे दूर करने के लिये बर्मा से भिक्षु कुछ काल बाद फिर तामिल लोगों ने लंका पर के बाद से फिर कभी तामिल लोग लंका से सके । १५०५ में पोर्चुगीज और १६०२ में तब से ईसाई मत का भी इस द्वीप में प्रसार हुआ । १७९५ में अँगरेजों ने डच लोगों से लंका को छीन लिया और १८१५ में कांडि का स्वतंत्र राज्य भी ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया । इस समय संपूर्ण लंका ब्रिटेन के अधीन है । वहाँ हिंदू, बौद्ध और ईसाई मत- - तीनों धर्मों का प्रचार है। लगभग चौथाई जनता तामिलभाषी हिंदू है । उत्तरीय जिलों में हिंदू मंदिरों की भरमार है । बहुत से बौद्ध मंदिरों में भी हिंदू देवताओं की मूर्तियाँ विद्यमान हैं । श्रधिकांश जनता बौद्ध धर्मानुयायी है । श्राज लंका-निवासियों को भारतीय भिक्षु से दीक्षा लिए हुए दो सहस्र वर्ष से अधिक समय बीत चुका है तिसपर भी
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com