________________
२०२
नागरीप्रचारिणी पत्रिका उपासक थे। बेयन का शिवमंदिर, अकोर का विष्णुमंदिर, तथा बोरोबुदूर का बुद्धमंदिर आज भी बृहत्तर भारत की सुंदर झाँकी दिखा रहे हैं। सुदूरपूर्व के प्रस्तर-खंडों पर खुदी हुई रामायण, महाभारत और गीता की कथाएँ सहस्रों वर्ष प्राचीन हमारे साहसी प्रचारकों और धर्म-सामाज्य-निर्माताओं का स्मरण करा रही हैं। मानव-धर्मशास्त्र का
"एतद्दशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः । स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवाः ॥ यह श्लोक उसे प्रेरणा देने लगता है और उसे प्रतीत होता है कि भारत भी कभी अपना विस्तार कर चुका है। जापान से मिस्र तक, बाली से ग्रीस तक बृहत्तर भारत का विशाल भवन खड़ा था। आइए उसकी रूपरेखा यहाँ खींचें
आज से ढाई सहस्र वर्ष पूर्व भारतवर्ष में एक महान् धार्मिक क्रांति हुई थी। उस समय केवल भारत में ही नहीं, अपितु समस्त संसार के धार्मिक क्षेत्र में बड़ी उथल-पुथल मच रही थी। लगभग उसी काल में चीन में लाउत्सी
और कन्फ्यूशस, ग्रीस में सुकरात तथा उसके समकालीन अन्य दार्शनिक और बैबिलोन में ईसा, धर्म के प्राचीन विचारों को परिशोधित कर रहे थे। भारत में इस क्रांति के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध थे। सारनाथ में अपने पाँच शिष्यों को संबोधन कर बुद्ध ने उपदेश दिया-"भिक्षुओ, अब तुम लोग जाओ और बहुतों के कुशल के लिये, संसार पर दया के निमित्त, देवताओं और मनुष्यों
की भलाई, कल्याण और हित के लिये भूमण करो। तुम उस सिद्धांत का ‘प्रचार करो जो आदि में उत्तम है, मध्य में उत्तम है और अंत में उत्तम है।
संपन्न, पूर्ण तथा पवित्र जीवन का प्रचार करो।" बुद्ध का अपने शिष्यों को यही प्रथम उपदेश था। भारतीय संस्कृति के इतिहास में इसका विशेष महत्त्व है; क्योंकि यहीं से धर्मचक्र का प्रवर्तन आरंभ होता है। इसी उपदेश में भारत के सांस्कृतिक विस्तार का तत्त्व निहित है। संस्कृति का यह प्रसार बुद्ध के जीवनकाल में भारत में ही फैलता रहा, पर अशोक के समय से यह सांस्कृतिक विस्तार भारत से बाहर फैलना आरंभ हुआ। बुद्ध की मृत्यु से २३६ वर्ष पश्चात् मोद्गलिपुत्र तिष्य ने तृतीय संगीति (सभा) को आमंत्रित किया। इस सभा में निश्चय किया गया कि विविध देशों में बौद्धधर्म के प्रचारार्थ नौ प्रचारक-मंडल भेजे जायें। काश्मीर और गांधार में मज्झतिक को, महिष
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com