________________
उपायनपर्व का एक अध्ययन
१८७ गंधर्व-(४८.२३ ) सुरेंद्र शास्त्रा ने गंधर्वो का देश (कनिंघम, वहीं, पृ०७३) रामायण के एक अवतरण के आधार पर (उत्तरकांड ११३, १०११) सिधु के दोनों कूलों पर माना है।
शुकर-(४८२४) यह नाम संस्कृत साहित्य में बहुत कम आता है। चीनी भाषा के चंद्रगर्भ सूत्र में स्वाती नक्षत्र के प्रभाव में जो राज्य दिए गए हैं, उनमें एक का नाम शु-किया-ला है जिसका संस्कृत रूप शूकर है (सिल्वों लेवी, बी०, ई० एफ० ई० ओ० ५, पृ० २७०)। संस्कृत में . शूकर शब्द के अर्थ है-ऐसा प्राणी जो घुरघराता है। इसी लिये सुअर को शूकर कहते हैं। इनकी पहचान शबरों से की जाती है जो उड़ीसा, छोटा नागपुर, पश्चिमी बंगाल तथा मद्रास और मध्यप्रदेश में अब भी हैं (रिस्लेट्राइब्स ऑव बंगाल जिल्द ५, पृ० २४१)।
पांशु राष्ट्र-(४८।२६) महाभारत में कहा है कि (६१, ३०) अनायुस का एक पुत्र पाशुराष्ट्र का राजा हुआ। पांशु पांडवों के साथ महा. भारत में लड़े ( उद्योग ४, १७) और उनका संबंध औड्रों से है ( वही ४, १८)। औडू उड़ीसा के रहनेवाले थे, इसलिये हमें पांशु लोगों की खोज उड़ीसा या छोटा नागपुर में करनी चाहिए। उड़ीसा में पान जाति के लोग प्राचीन पांशु लोगों के उत्तराधिकारी हैं (रिस्ले-वही, जिल्द २, पृ० १५६)।
सिहल - प्रसिद्ध है।
समुद्रसार-कोषों में इसे मोती कहा है, लेकिन इस सूची में मोती का नाम अलग दिया है इसलिये समुद्रसार शायद समुद्र फेन का द्योतक हो ।
वैडूर्य-(४८.३०) प्रारंभ में वैडूर्य स्फटिक का द्योतक था। लेकिन गाबे (डि इंडिशेन मिलिरैलियन, पृ० ८५, नोट २) तथा राय सौरींद्रमोहन ठाकुर (मणिमाला) के अनुसंधानों से सिद्ध हो चुका है कि वैडूर्य और लहसुनिया एक हो रत्न थे।
मोती-भारत में मोती मनार की खाड़ी से आते थे।
शंख--(४८१३०) ६ठी शताब्दि तक शंख सीलोन से इटली तक भेजे जाते थे। मनार की खाड़ी के शख अब भी बड़े पवित्र माने जाते हैं।
कुथ--(४८.३०) हाथी को रंगीन झूलों को कुथ कहते थे। ऐसा मालूम पड़ता है कि सिहल में हाथियों की भूले अच्छी नहीं थीं।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com