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हमारा साके का दिन आज [ लेखक-श्री मैथिलीशरण गुप्त ]
हमारा साके का दिन आज नहीं हमें केवल अपनी ही, औरों की भी लाज । नए नए निर्लज्ज हूण शक सज्जित हैं अभिनव अत्रों से; फलित न होंगे दलित यत्न अब उन्हीं गलित कुंठित शस्त्रों से । सजने होंगे नई विजय के हमें नए ही साज,
- हमारा साके का दिन आज । हम अबाध्य भी रहे अनुदत न हो नृशंस विरोध हमारा, प्रतिपक्षी के तन से क्या है, मन से हो प्रतिशोध हमारा । संस्कृत होकर रहे अंत में प्राकृत पुरुष-समाज ।
हमारा साके का दिन आज । कोरी नीति कापुरुषता है, कोरी शक्ति हिंस्र पशु चेष्टा, निज विक्रम का सभा-रत्न ही अपना अनुपम उपदेष्टा । अपने प्रादर्शों का द्रष्टा कालिदास कविराज,
हमारा साके का दिन आज ।
* कार्य केवला नीतिः शौर्य श्वापदचेष्टितम् । -कालिदास ।
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