Book Title: Vikram Pushpanjali
Author(s): Kalidas Mahakavi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 206
________________ १९८ नागरीप्रचारिणो पत्रिका रोमांचकारिणी घटना का चित्रण है जिसका उल्लेख यूनानी इतिहास-लेखक अर्रियन ने किया है। ___ यवन सेना से युद्ध के समय अन्य सब लोग तो विचलित हो गए, परंतु पराक्रमी पौरव अपने स्थान पर अडिग जमे रहे। उस ईरानी सम्राट की तरह जिसने ऐसे समय रणभूमि से भागकर प्राण बचाए थे, महाराज पौरव अपने स्थान से तिल भर भी न हिले और वीरों को भाँति उन्होंने अपने हाथी को निर्भयतापूर्वक चारों ओर से बरसते हुए भयंकर बाणों के बीच में रोका। एक बाण उनके दाहिने कंधे में लगा। उस समय हाथी उस स्थान से लौटा। महाराज पौरव अभी कुछ ही दूर गए थे कि उन्हें पीछे आता हुश्रा एक अश्वारोही दिखाई पड़ा। उसने चिल्लाकर कहा-'हे पौरव, अपना हाथी रोको, मैं यवनराज से तुम्हारे लिये संदेश लाया हूँ।' वीर पौरव ने तुरंत उसे पहचाना । यही वह तक्षशिला का राजा आभि है जो देशद्रोह करके सिकंदर की ओर जा मिला था। उनके मन में घृणा भर गई और अपने स्थान पर बैठे हुए ही घूमकर अपने घायल हाथ की बची हुई शक्ति को समेटकर उन्होंने एक बळ फंककर मारा। यदि अभि ने कूदकर अपनी रक्षा न की होती तो वह अवश्य ही उसका निशाना बन गया होता। श्री हेड का कथन कि इस पदक पर पौरव के पराक्रम की यही घटना अंकित है (बी०वी० हेड, हिस्टोरिया मिम्यूरम, ५० ८३३; के हि०, पृ० ३६७, ३८९) बिलकुल यथार्थ जान पड़ता है, क्योंकि इससे दृश्य का अर्थ पूरी तरह समझ में आ जाता है। पदक की दूसरी ओर एक खड़े हुए वजधारी पुरुष की मूर्ति है जिसे वियस देवता के रूप में सिकंदर कल्पित किया गया है। स्मिथ ने यूनानी भाषा के पोरस का संस्कृत रूप पौरव मानने में कुछ संदेह किया है (अर्ली हिस्ट्री ४ सं०, पृ० ६४, पाद-टिप्पणी)। किंतु कैब्रिज हिस्ट्री के विद्वान् लेखक ने पोरस का शुद्ध रूप पौरव ही स्वीकार किया है। हमारी सम्मति में पौरव नाम ही शुद्ध था। पाणिनि के सूत्र (४,३,१००)* * जनपदिनाम् जनपदवत्सर्वम् जनपदेन समानशब्दाना बहुवचने । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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