Book Title: Vikram Pushpanjali
Author(s): Kalidas Mahakavi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 209
________________ पौरव-पराक्रम-पदक १९९ पर काशिका टिप्पणी में जनपद और उसके शासक के भिन्न नामों का उदाहरण देते हुए लिखा है _अनुषण्डो जनपदः, पौरवो राजा, सा भक्तिरस्य पौरवीयः । अर्थात् अनुषंड एक जनपद का नाम था जिसका उल्लेख पाणिनि के कच्छादि गण (४।२।१३३) में भी पाया है। उस जनपद के अधिपति क्षत्रिय शासक का नाम पौरव था। राजा पौरव के प्रति भक्ति से अनुरक्त जो जनपदनिवासी थे वे पौरवोय कहलाते थे। वीर पौरव के लिये दृढ़ भक्ति जनता में स्वाभाविक थी, और उसके लिये 'पोरवीय' शब्द भाषा में प्रचलित था, यह बात व्याकरण साहित्य के एक कोने में सुरक्षित इस उदाहरण से ज्ञात होती है। यह अनुषंड जनपद जिसके राजा पौरव थे, प्राचीन केकय देश के ही अंतर्गत रहा होगा। वस्तुतः झेलम-शाहपुर-गुजरात के पहाड़ी इलाकों का प्रदेश या प्राचीन केकय. देश ही राजा पौरव का राज्य था, जैसा कि यूनानी ऐतिहासिक के कथन से ज्ञात होता है। कतिप्रस के अनुसार झेलम और चिनाब के बीच में पोरस का राज्य था और उनके राज्य में तीन सौ नगर थे। इस पदक के महाराज पौरव, जिन्होंने स'ग्रामभूमि में यवन-सेना से लोहा लिया प्राचीन क्षात्र-धर्म की प्रतिमूर्ति थे। यूनानी इतिहासलेखक उनके वोरत्व-गुण को प्रशंसा करते हुए नहीं अघाते। जिस समय घिर जाने पर पौरव अपने हाथी से उतरे और यूनानी दूत आदरपूर्वक उन्हें यवन सेनापति के पास लिवा ले गया, स्वय सिकंदर एनके स्वागत को घोड़े पर चढ़कर पाया। उनके मुख के तेज और शालवृक्ष की तरह ऊँचे दृढ़ शरीर को देखकर सिकंदर का मन सम्मान और आश्चर्य से भर गया। सिकंदर ने पौरव से पूछा-"आप अपने साथ कैसा व्यवहार चाहते हैं ?" "राजा के यथायोग्य," पौरव ने उत्तर दिया। सिकदर ने फिर कहलाया-"कुछ और निश्चित बात कहिए।" पौरव ने दर्प के साथ उत्तर दिया- 'राजा के लिये यथायोग्य', मेरे इस कथन में ही सब कुछ आ गया है।" इस उत्तर से प्रसन्न होकर सिकंदर ने उनको अपने मैत्रो-बंधन में बांध लिया और महाराज पौरव फिर अपने पूर्व पद पर अधिष्ठित हुए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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