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नागरीप्रचारिणी पत्रिका प्रदेश को सुवर्णभूमि कहते थे। इन वस्तुओं के अलावा वे अपनी जाति की दासियां तथा दूर देश के पशु-पक्षी भी लाए (४८, १०)।
- कायव्य-(४८।१२) इसका पाठभेद कावख्य भी दिया है। हमारी समझ में कावख्य पाठ ठीक जान पड़ता है। यह शायद वही जाति थी जिसके नाम से खावक का दर्रा है। यह जाति संभवत: पंजशीर और गोविंच की घाटियों के बीच में रहती थी।
दरद-(४८।१२) प्राचीन दरद से आधुनिक दर्दिस्तान का बोध होता है। प्राचीन संस्कृत-साहित्य में दरद शब्द का व्यवहार किसी खास प्रदेश के लिये हुआ है क्योंकि चितराली, काफिर तथा हुम्जा लोगों के लिये संस्कृतसाहित्य में अलग नाम पाया है। दरद शब्द का व्यवहार. शायद गिलगिट, गुरेज, स्वात तथा काहिस्तान वालों के लिये हुआ है (प्रियर्सन, लिं० स० ऑक् इंडिया, जिल्द ८, भाग २, पृ०३)।
महाभारत में द्रोणपर्व (१२१, ४८३५-३७, ४८४६-४७) में इन्हें पर्वतवासी बताया है और काश्मीर (वही, ७०,२४६६) तथा कांबोज के बगल में रखा है (सभा० २४,२२)। इनका शस्त्र पत्थर था तथा गुलेलों से इसे फेकने में ये बड़े दक्ष थे (द्रोण० १२१, ४८४५-४७)। दरदों के कंबोज के सान्निध्य से दोनों देशों के बहुत से रीति-रिवाज एक से हैं।
दाब-(४८।१२) दाब देश की पहचान श्री जयचंद्र ने चिनाब तथा रावी के बीच में जम्मू और बल्लावर के जिलों से की है (भारतभूमि०, पृ० १०६)।
शूर-(४८।१२) इनकी पहचान मध्यकालीन शूर कबीले से हो सकती है। इनमें सबसे प्रसिद्ध व्यक्ति शेरशाह शूर हुआ। संभवत: पहले शूर घोरों के देश में रहते थे। वहाँ से निकाले जाने पर वे ऐमाक प्रदेश में फिरंदर की तरह घूमते रहे।
- वैयमक-(४८।१२)-इनकी पहचान मध्य अफगानिस्तान के ऐमाक लोगों से की जा सकती है। ऐमाक उपरिश्येन (हिंदूकुश) के प्राचीन विजेताओं की संताने हैं, उनकी भाषा ईरानी है। ये अच्छे लड़ाके होते हैं तथा इनका व्यवसाय ऊँट पालना है (ये ऊँटेरे हैं)। इनके देश में चाँदी-सोने, माणिक्य तथा
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