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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
या भिन्न भिन्न । इस सूची में हम महाभारत के कितव को भी जोड़ सकते हैं। कितव या कैतव्य प्रायः उलूकों के साथ महाभारत ( आदि०, १७७,२०; उद्योग, ५६,२३ ) में रखे गए हैं। उलूक और कुलूत एक ही थे और इन्हीं के नाम से कुलू की घाटी प्रसिद्ध है । उलूक तथा कुलूत में भी अक्षर बदलने की प्रथा का आभास मिलता है। अगर कुलूत की पहचान ठीक है तो कितव आधुनिक सुकेत के रहनेवाले होंगे। मकरान के कितवों से इनका संबंध कहना कठिन है । शायद वे दोनों एक ही नस्ल के रहे हों ।
जो उपहार वे युधिष्ठिर को लाए ( ४१, १०-११ ) वे उनके देश के अनुरूप ही थे । इन वस्तुओं में बकरे, भेड़, गाय तथा सुअर, ऊ ट तथा गधे, फलों की शराब तथा बहुत से रत्नों का उल्लेख है । अच्छी नस्ल के ऊँट, खच्चर, भेड़ तथा बकरियाँ आज दिन भी उनके प्रदेश में पाई जाती हैं। अच्छी नस्ल के ऊँटों को पैदा करना बलूचों को बहुत प्रिय है । दश्त के ऊँट तेज रफ्तार के लिये अच्छे हैं ( बल्लू० गजे० ७, १८१-८२ ) । बलूचिस्तान के सबसे बहुमूल्य ऊँट खारान में मिलते हैं (वही, जिल्द ७, पृ० ११६ ) । युधिष्ठिर के दर्बार में जो शराब आई वह फलों से बनाई गई थी, शायद खजूर से | आज दिन भी पंजगूर के अंगूर मशहूर हैं ( वहीं, ७, पृ० १६५ ) । उपायन के शाल तथा कंबल शायद आधुनिक नम्दे थे जिनके लिये आज दिन भी खारान मशहूर है ( वहीं, जि० ७, पृ० ११६ ) ।
प्राग्ज्योतिष - ( सभा० ४७ । १२-१४ ) । महाभारत के कुछ अवतरणों में प्राग्ज्योतिष म्लेच्छ राज्य कहा गया है ( ४७, १२ ) । इसके राजा भगदत्त का नाम आदर के साथ लिया जाता है और इसके राज्य की स्थिति ( महा० २३।१८-१९ ) पूर्व- उत्तर में की गई है, पर मार्कडेय पुराण ( ५७,४४ ) के अनुसार यह राज्य पूर्व में भी कहा जाता है । भी रहे होंगे, क्योंकि खोपर्व' (२३,६४४ ) में इसे की सेना में (२३,१९) किरात, चीन तथा समुद्र के के लोग थे। प्राचीन काल में प्राग्ज्योतिष का राज्य आसाम तथा उत्तरी बंगाल के कुछ भाग में रहा होगा ।
इस
राज्य में बहुत से पहाड़
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शैलालय कहा है । भगदत्त किनारे रहनेवाली जातियों
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