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नागरीप्रचारिणी पत्रिका उत्तरे पंजाब में मिला था। एक ही सिक्के के बल पर यह कहना कठिन है कि वृष्णि राज्य की स्थिति कहाँ थी। यह तो विदित है कि कुकुर अंधक-वृष्णिसंघ के अंग थे। यदि खोखरैन ही प्राचीन काल के कुकुर थे, तो वृष्णि भी शायद उन्हीं के आसपास रहे होंगे। इस संबंध में यह माके की बात है कि वैश्यों में एक जाति बारहसेनी नाम की है। लौकिक व्युत्पत्ति के अनुसार यह शब्द बारहसेन या बारह सेनाओं से निकला है। यह शब्द युक्त प्रांत के पश्चिमी जिलों में पाया जाता है। क का कहना है कि इनका प्राचीन स्थान अगरोहा है (दि ट्राइब्स एंड कास्ट स, जि० १, पृ० १७७)। पजाब में भी थे पाए गए हैं। एक अजीब सी बात है कि रोज ने ( वही, जिल्द २, पृ० १६) इन्हें चमारों से निकला हुआ माना है। इसके प्रमाण में उन्होंने कहा है कि बारहसेनियों के विवाह में जो मुकुट पहना जाता है, उसमें एक चमड़े का टुकड़ा भी लगा रहता है। बारहसेनियों में अपने को वार्ष्णेय कहने की प्रथा अष चल गई है। यह कब से चली, यह ठीक से नहीं कहा जा सकता। आजकल के बारहसेनी लेन-देन का काम करते हैं, पर इससे उनकी प्राचीनता में कोई संदेह नहीं होना चाहिए। जायसवाल का कहना है कि जब भारतीय गणतंत्र राज्यों का अस्तित्व नष्ट होने लगा, तब उन गणों ने व्यापार को अपनाया और उसमें वे खूब बढ़े (हिंदू पालिटी भाग १, पृ०५९)। - हारहूण--(४७।१९, अरण्य०, ४८, २१; शांति०६५, २४३०)। हारहूणों की स्थिति पश्चिम में बताई गई है। हारहूणों को पाठांतर हारहूर भी दिया है, जो ठीक है। अर्थशास्त्र (पृ० १३३) में हारहूरक अंगूर की शराब अच्छी कही गई है। हेमचंद्र (अभिधान०, पृ० ११५५) ने अंगूर के नामों में हारहूरा भी कहा है। दिग्विजय पर्व' ( सभा० २९।११ ) में हारहूर पश्चिम में रहनेवाले कहे गए हैं। रमठो से उनका संबंध कहा गया है। वराहमिहिर बृह०, १४, ३३) हारहूरों को सिधु-सौवीर तथा मद्रों के अगल-बगल रखते हैं। रमठ संस्कृत में हींग को भी कहते हैं, अतः वहाँ की पैदावार से इस देश का नाम हो गया। हींग दक्षिण अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और बुखारा में होती है, अत: रमठ भी यहीं रहा होगा। लेवी के अनुसार रमठ देश गजनी और बखान के बीच रहा होगा (ज० ए० १६१८, १२६)। ह्वन्सांग के
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