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उपायनपर्व का एक अध्ययन
१७१ शक-(४७११९), अरण्यपर्व ( १८६, २९-३० ) में शकों का उल्लेख आंध्र, पुलिद, यवन, कंबोज, और्णिक तथा शूद्रों के साथ किया गया है। इसी पर्व में दूसरी जगह (४८।२०) इनका उल्लेख पल्हव, दरद, यवन तथा किरातों के साथ किया गया है। उद्योगपर्व (४|१५) में इनका साथ पल्हव, दरद, ऋषिक तथा पश्चिम अनूपों के साथ किया गया है। शकों के विषय में पहले कहा जा चुका है।
ओड-(४७।१९) इनका देश प्राचीन स्वात (स्टाइन-ऐन पार्क० टूर इन स्वात, पृ० ४७ ) में माना गया है। स्टाइन ने एक प्राचीन किले का पता उत्तरी स्वात में लगाया जो ऊडे ग्राम के ठीक ऊपर था। स्टाइन के मतानुसार ऊडे प्राम ही सिकंदर के ऐतिहासिकों का ओरा था ( एरियन, ४, २७)। इस संबध में अपने मत की पुष्टि के लिये स्टाइन ने बहुत से प्रमाण दिए हैं (स्टाइन, वही, पृ० ४०)। महाभारत के ओड्र तथा प्रीकों के ओरा का साम्य ठीक ठीक बैठ जाता है। पंजाब में अब भी ओड़ जाति के लोग हैं; वे शायद प्राचीन काल में स्वात से आए हों। वे फिर दर जाति के हैं और मिट्टी को खुदाई के काम में प्रवीण होते हैं। एक विचित्र बात यह है कि वे एक ऊनी कपड़ा अवश्य पहनते हैं (इबेड्सन, कास्ट्स एंड ट्राइब्स इन इंडिया, पृ० १०८)। यह ऊनी कपड़ा शायद एक ठंढे मुल्क की रहन-सहन का सूचक है।
वृष्णि-(४७११६) प्राचीन अनुभूतियों के अनुसार वृष्णियों का स्थान काठियावाड़ के पास होना चाहिए। पर उपायनपर्व में इनका उल्लेख हारहूर और हैमवतों के साथ किया गया है। यह जानने योग्य है कि राज. वृष्णि का एक ही सिक्का कनिंघम द्वारा (काइस-एश्यंट इ० फलक ४, १५) प्रकाशित किया गया था। यह सिक्का अपने ढग का एक ही है। उसमें ब्राह्मी में तथा ऊपर खरोष्ट्री में लेख है, जो बर्नी के अनुसार ( ज० रॉ० ए० सा० १९००, ४१६ ) इस पाठवाला है
ब्राह्मी-वृष्ण [-रा] जज्ञ यागणस्य त्रतरस्य; तथा खरोष्ट्री में वृष्णि रजागण [ग] [-] ...। एलन का पाठ (एश्यंट ई० का०, पृ० ११४१५) है-वृष्णिराजन्यो गणस्य व्रतरस्य ( वृष्णि राजन्यगण के त्राता)। इसका समय एलन के अनुसार पहली श० ई० पू० का है। यह सिका शायद
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