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नागरीप्रचारिणा पत्रिका यह प्रकट होता है कि ओराइताइ बलूचिस्तान की एलासबेला रियासत में पुराली तथा हिंगोल नदियों के बीच में रहते थे।
रंबकिया की स्थिति एक व्यापारिक मार्ग पर था। कंधार से दक्षिण की ओर होता हुआ एक रास्ता रंषकिया से होकर गुजरता था और पुराली नदी के किनारे होते हुए वह नीचे नीचे पहाड़ियों से होकर हिंदुस्तान में जाता था ( वार्मिग्टन, वही, पृ० २४)।
__ ऊपर के अवतरणों की जाँच से पता लगता है कि रंबकीय शब्द संस्कृत वैरामक का प्रीक रूपांतर है। वैरामक का मूल रूप शायद विरामक था। पीक हिज्जे में केवल संस्कृत 'वि' बीच में आ गई। संस्कृत-साहित्य में ओराइताइ केवल अपनी राजधानी के नाम से पाणिनि के 'तद्राज' नियम के अनुसार जाने गए।
पारद-(सभा० ४७९, ४८।१२)-उपायनपर्व में पारदों का दो बार वर्णन आया है। पहली बार उनकी स्थिति सिधु नदी के पश्चिम में मानी गई है ( सभा०, ४७९), और दूसरी बार उनका सबध बालीकों से स्थापित किया गया है (४८।१२)। महामायूरी ( ९५, २; ज० ए० २, १९१५, पृ० १०३-४ ) तथा वराहमिहिर (बृह० १४।२१) पारदों को वोकाण तथा रमठों के बीच में रखते हैं। टॉल्मी के पारदेन (६।२१,४) से गिदरोशिया या बलूचिस्तान के भीतरी भाग का बोध होता है और पारद तथा पारदेन एक ही हैं। अब बलूचिस्तान से पारदों का सब चिह्न मिट चुका है। केवल एक चिह्न बाकी है, जिससे उनका मकरान में होना साबित है। पंजगूर के नखलिस्तान में स्टाइन को परदानदम नाम का पुराना स्थान मिला (आके टूर इन गदरोशिया, पृ० ४५) जिससे यह प्रकट होता है कि पारद कभी वहाँ रहे होंगे। .
जहां पारद शब्द बाल्हीकों के संग आया है ( सभा० ४८, १२) वहाँ शायद वह पार्थ लोगों का बोधक है। पारद या फिर दर पार्थियन.पहले कैस्पियन समुद्र के दक्षिण-पूर्व में रहते थे; बाद में उन्होंने खुरासान फतह किया ( हजफील्ड, आर्क० हिस्ट्री ऑष ईरान, पृ० ५३)। अगर हम मान ल कि पारद और पार्थियन एक ही हैं तो पारदों की बलूचिस्तान में स्थिति इस बात से
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