________________
१६४
नागरीप्रचारिणी पत्रिका वंग, कलिंग तथा प्रानून जाने पर प्रायश्चित्त का विधान किया है। पाणिनि को भी कारस्करों से जानकारी थी (६, १, १५६)-'कारस्करो वृक्षः' से उस वृक्ष का मतलब है जो उस देश में पैदा हो। इनका ठीक ठीक पता नहीं, पर अनुमान हो सकता है कि वह चितरालियों की शाखा रही होगी जो काशगर नदी की घाटी में रहते हैं।
लोहजंघ-(सभा० ४६।२१) इनके स्थान का भी पता अभी ठीक ठीक नहीं चलता। इनकी स्थिति लोह, परम कांबोज तथा ऋषिकों ( २४२४) से भिन्न थी। ये दस मंडलों सहित लोहितों से भी भिन्न हैं जिन्हें अर्जुन ने जीता।
कश्मीर-(समा० २४।१६) इनका संबंध शायद अफगानिस्तान में काबुल नदी की घाटी में रहनेवालों से हो। रोह शब्द का प्रयोग कुछ अफगानी कबीलों के लिये हुआ है, जिससे आज भी बरेली का जिला रुहेलखंड कहलाता है।
भरुकच्छ-(समा०४७८) भडोच के निवासी गंधार के घोड़े लाए। शायद वे इनका व्यापार करते रहे हों। ___ परिसिंधुमानव-( सभा० ४७।९-१०) इन श्लोकों में सिंधु के पास लासबेला, कलात तथा दक्षिणी बलूचिस्तान की भौगोलिक स्थिति स्पष्ट है। श्लोकों का भावार्थ यह है कि वैराम, पारद, पंग और कितव, जिनकी जीविका यदा-कदा बरसात पर तथा नदियों पर निर्भर थी और जो समुद्र-स्थित हरे-भरे स्थानों में रहते थे, युधिष्ठिर को उपहार ले गए।
स्टाइन ने कुछ दिन पहले मकरान का जो वर्णन किया है उससे महाभारत का मिलान करने पर पता चलता है कि महाभारत के वर्णन में कितनी समता है (स्टाइन-ऐन आालॉजिकल टूर इन गडगेशिया, आ० स० मिमायर, ४८ )। मकरान और कलात का अधिक भाग रूखे-सूखे पहाड़ी प्रदेश से भरा हुआ है। पहाड़ियां पूर्व से पश्चिम को जाती हैं। उसका पश्चिमी अंश अरब समुद्र के पास पास है। इसके किनारे मछुए मछली मारकर किसी तरह अपना कालयापन करते हैं। बहुत-सी सूखी घाटियों में, जिनमें पानी शायद कभी आता हो, कुछ गांव हैं (वही, पृ०८)। मलावान तहसील का
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com