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नागरीप्रचारिणी पत्रिका शब्द से हैं तो काफिरिस्तान के प्राथमिक 'काफ' तथा कामा नदी के नाम में काम इत्यादि भी इन दोनों के निकट संबध की स्थापना के परिचायक हैं। यह भी जानने योग्य बात है कि काम देश का नाम पश्तो में कमोज है (राषट्सन, दि काफिर्स ऑव हिंदूकुश, पृ०२१)।
लेवो के मतानुसार यह सिद्ध है कि कपिश-कंबोज एक ही शब्द के रूप हैं। इनके अलावा 'कासिक' शब्द भी शायद इन्हीं देशों का परिचायक था और कार्पासिक रूप शायद ऐसे प्राचीन रूप का परिचायक हो जिसका पता हमें अब नहीं। महाभारत से दूसरी बात का पता चलता है कि चाहे काफिरिस्तान कंबोजगणं का एक हिस्सा रहा हो लेकिन काफिरिस्तान के लिये फासिक शब्द लाया गया है, जो उसकी स्पष्ट भौगोलिक स्थिति का द्योतक है। बाद में कंबोज और कपिश में भी कोई फर्क नहीं रह गया।
काफिर देश से युधिष्ठर को जो भेंटें आई वे उस देश के अनुकूल थी ( सभा० ४७,७)। काफिरों को यहां शूद्र कहा गया है जो अपने साथ काफिरिस्तान की ३००० सुदर दासियों को, जिनका रंग ताँबे की तरह दमकता हुमा तथा जिनके घने केश लहलहाते थे, लाए। दासियों के साथ ही के बकरों के चमड़े तथा मृगधर्म भी लाए। इसमें संदेह नहीं कि काफिर अपने साथ दासियां लाए। हाल ही तक उनमें यह रीति प्रचलित थी कि उनके देश की त्रियाँ पशुओं की तरह बाजारों में बेची जाती थी।
कापिशायिनी सुरा (पा०४, २, ९९) कपिश देश के प्रतीक-स्वरूप थी। अभी हाल तक काफिरिस्तान में अंगूरी शराब बनाई जाती थी। इसे . मशकों में भर देते थे और कुछ दिनों के बाद उसकी साफ और नशीली शराब बन जाती थी (रॉबर्टसन, वही, पृ० ५५८-५९)।
चित्रक-(सभा०, ४६-२१) अटुसालिनी (पृ० ३५०) तथा विशुद्धिमग्ग (पृ० २९९) में चिराल नामक एक पर्वत है। इसकी पहचान आधुनिक चितराल से को जा सकती है।
कुकर-(सभा, ४६।२१, ४८।१४-१५)। सभापर्व (४८।१४) में कुकुर अंबष्ठ ताय, वस्त्र-पा तथा पल्लवों के साथ मिलते हैं। कुकुरों का गण
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