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साहसांक विक्रम और चंद्रगुप्त विक्रमादित्य की एकता [ लेखक - श्री भगवद्दत्त, बी० ए० ]
- १ - दशम शताब्दि विक्रम अथवा उससे पहले के किसी कोशकार का एक प्रमाण है । वह कोशकार अमर-टोकाकार क्षीरस्वामी द्वारा उद्धृत किया गया है । क्षीर को संवत् १९५० के समीप का आचार्य हेमचंद्र अपनी अभिधानचिंतामणि में बहुधा उद्धृत करता है। अतः क्षीर संवत् १-१५० के पश्चात् का नहीं है। क्षीर-उद्धृत कोशकार लिखता है -
विक्रमादित्यः साहसाङ्कः शकान्तकः | २/८/२ ॥
अर्थात् विक्रमादित्य, साहसांक और शकांतक एक ही थे ।
२- सुप्रसिद्ध महाराज भोजराज ने अपने सरस्वतीक ठाभरण नामक अलंकार -ग्रंथ में लिखा है
केsभूव नाट्यराजस्य राज्ये प्राकृतभाषिणः ।
काले श्रीसाहसाङ्कस्य के न संस्कृतवादिनः || २|१५ ॥
इस पर टीकाकार रत्नेश्वर मिश्र लिखता है -
श्राव्यराजः शालिवाहनः साहसाङ्को विक्रमादित्यः
३ - हाल अथवा सातवाहन प्रणीत गाथा सप्तशती-कोश का टीकाकार हारिता. पीतांबर - गाथा ४६६ को टीका में गाथांतर्गत विक्रमादित्यस्य पद का अर्थ साहलांकस्य करता है। इस टीकाकार की दृष्टि में यह विक्रमादित्य साहसांक ही था ।
वह
४ - विक्रमादित्य और आचार्य वररुचि समकालिक थे । आचार्य वररुचि
* भैरव शर्मा द्वारा मुद्रित, काशी, वैशाख सुदि ८, भौमे १९४३ वस्सरे ।
+ पं० जगदीश शास्त्री, एम० ए० का संस्करण, लाहौर ।
इस वररुचि से बहुत पहले अष्टाध्यायी का वार्तिककार और सुप्रसिद्ध काव्यकार मुनि वररुचि हो चुका था।
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