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भागरीप्रचारिणी पत्रिका बात का अवश्य ध्यान रखा है और चक्रपाणि का प्रमाण यह निश्चित कराता है कि उन्मत्त चंद्रगुप्त की कथा ऐतिहासिक थी।
चंद्रगुप्त-साहसांक और भट्टार हरिचंद्र २१-शक १०३३ (सवत् ११६८ का वैद्यराज तथा गद्य-पद्य कवि महेश्वर अपने विश्वप्रकाश कोश की भूमिका में लिखता हैश्रीसाहसाङ्कनपतेरनवधवैद्यविद्यातङ्गपदमद्वयमेव विनत् । यश्चन्द्रचारुचरितो हरिचन्द्रनामा स्वव्याख्यया चरकतन्त्रमलश्वकार ॥५॥ आसीदसीम-वसुधाधिप-वन्दनीये तस्यान्वये सकलवैद्यकलावतंसः । शक्रस्य दन इव गाषिपुराधिपस्य श्रीकृष्ण इत्यमलकीर्तिलतावितानः ॥६॥
अर्थात् चरक तंत्र पर व्याख्या लिखनेवाला हरिचंद्र वैद्य महाराज श्री साहसांक का वैद्य था। उसके असीम राजाओं से वंदनीय कुल में श्रीकृष्ण वैद्य हुआ। श्रीकृष्ण गाधिपुर अथवा कनोज के राजा का वैद्य था।
इससे आगे श्लोक १२ में महेश्वर अपने साहसांकचरित नामक एक महाप्रबंध रचने का उल्लेख करता है। श्लोक १६ में पुन: लिखा है-साहसांक एक कोशकार भी था।
२२-महेश्वर ने शब्दप्रभेद नाम का भी एक प्रथ लिखा था। उसमें भी वह साहसकिचरिख का कथन करता है। शब्द-प्रभेद की एक हस्तलिखित प्रति अलवर के राजकीय पुस्तकालय में विद्यमान है।
२३-वैद्य हरिचंद्र या भट्टार हरिचंद्र की चाकटीका का कुछ भाग अब भी सप्राप्त है ।। आयुर्वेदीय प्रथों को टीकाओं में वो भट्टार हरिचंद्र की घरकव्याख्या के उद्धरण भरे पड़े हैं।
२४-वाग्भट-विरचित अष्टांग-संग्रह का व्याख्याता वाग्भट शिष्य ईदु लिखता है
___* अलवर राजकीय हस्तलिखित पुस्तकों का सूचीपत्र, पृ० १०२, संलिस
श्रवतरण।
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पं० मस्तराम का संस्करण, लाहौर, संवत् १९८९ ।
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