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नागरीप्रचारिणी पत्रिका इनसे भी भूगोल की गुत्थियों को सुलझाने में बहुत कुछ मदद मिलती है। मैंने, जहाँ तक हो सका है, भा० ओ० रिसर्च इंस्टीच्यूट द्वारा प्रकाशित (आदि, सभा, अरण्य, विराट) पर्वो से ही उद्धरण लिए हैं, लेकिन कभी कभी मैंने कलकत्ता के १८३६ ई० के संस्करणवाले महाभारत से भी मदद ली है।
महाभारत के उन भौगोलिक अंशों (दिग्विजयपर्व, अ० २३ से २९ और उपायनपर्व, अ० ४७, ४८; अरण्यपर्व इत्यादि) के अध्ययन करते हुए मुझे ऐसा पता चला कि महाभारतकार पंजाब के गणतंत्रों को हेय दृष्टि से देखते थे तथा उन्हें म्लेच्छ, यवन, बर्बर, दस्यु कहने में भी संकोच न करते थे। उनका ऐसा विश्वास था कि पंजाबियों के संसर्ग से आर्य-संस्कृति को धक्का लगने की संभावना है। एक सॉस में महाभारतकार ने आंध्र, शक, यवन, पुलिंद, औरुणिक, कंबोज, सूत तथा आभीरों (अर० पर्व, १८६, २९-३०) को 'मिथ्यानुशासिनः' ( मिथ्या शासक ), 'पापाः' (पापी.) तथा 'मृषावादपरायणाः' (मूठ में तत्पर ) इत्यादि विशेषणों से संबोधित किया है। पश्चिमोत्तर प्रदेश तथा पंजाब को खरोष्ट्र देश से संबोधित किया है। कर्ण पर्व में पंजाषियों के प्रति कर्ण ने घृणापूर्ण शब्दों में अवहेलना प्रकट की है। शल्य द्वारा उत्तेजित किए जाने पर कर्ण ने पंजाबियों तथा मद्रकों को काफी लानत-बरामत की है। मद्रकों को उसने धोखेबाज, घृणा का पात्र तथा बर्बरभाषा-भाषो कहा है। ( कर्णपर्व ४०।२०)। क्रोध के आवेश में कर्ण ने पंजाबी त्रियों के प्रति भी काफी कड़े वाक्य कहे हैं (कर्णपर्व ४४३३)। एक ब्राह्मण की आँखों देखी पंजाब-अवस्था का वर्णन उस ब्राह्मण के शब्दों में कर्ण यों करता है- मैं वाहिकों में रह चुका हूँ, मैं उनके आचरणों से अवगत हूँ। उनकी स्त्रियां अश्लील गाने गाती हुई कभी-कभी वस्त्र भी फेक देती हैं। और उनका गाना क्या ? ऐसा ज्ञात होता है कि गधे रेंक रहे हों।' इसी प्रकरण में कर्ण एक पंजाबी लोकगीत को भी देता है, जिसका अर्थ यह है-'सुंदर भूषण-वस्त्रों से आच्छादित स्त्रियां कुरु-जांगल के मुझ गरीब वाहीक के लिये तैयार किए बैठी हैं। कौन-सा ऐसा दिन होगा जब शतद्र और इरावती पारकर मैं अपने देश में अपनी पुरानी प्रेयसियों से मिल सकूँगा। अरे वह कौन-सा ऐसा दिन होगा जब मैं बाजे-गाजे के साथ अपने घोड़े-गधे
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