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उपायनपर्व का एक अध्ययन
१४७ वक्ष प्रदेश पर इस सस्कृति का प्रोक तथा ईरानो संस्कृतियों से आदान प्रदान हुआ, जिसके फलस्वरूप ऐसी औपनिवेशिक सस्कृति का जन्म हुआ जिसमें भारतीय, प्रीक तथा ईरानी संस्कृतियों का एक अपूर्व सम्मिलन हुआ।
महाभारत के काल के संबध में अब भी बहुत विवाद है। दाहमान ('दास महाभारत आल्स एपॉक्स उंड रेख्टबुख' और 'जेनसिस डेस महाभारत') के अनुसार महाभारत की रचना पांचवीं या छठी शताब्दि में हुई। यह सिद्धांत अब मान्य नहीं है। विद्वानों द्वारा माना जाने लगा है कि महाभारत की रचना एक आदमी द्वारा नहीं हुई है। महाभारत के भौगोलिक अध्ययन में यह आवश्यक नहीं कि हम महाभारत के समय की विवेचना करें। इस खंड में केवल हम यही दिखाने की चेष्टा करेंगे कि सभापर्व या दिग्विजय( उपायन )पर्व में जो भौगोलिक अवतरण आए हैं उनसे भौगोलिक स्थिति पर . क्या प्रकाश पड़ता है।
अर्जुन के दिग्विजय (सभा० अ० २३-२५) से सभापर्व के समय पर काफी प्रकाश पड़ता है। अजुन का दिग्विजय हम जैसा पीछे देखेंगे, दो या तीन विभागों में बाँटा जा सकता है। इस जगह हम केवल उस विभाग की विवेचना करेंगे जहाँ अर्जुन कांबोजों को मदद से दरदों को जीतकर ( सभा० २४,२२) उत्तर की ओर बढ़े, तथा दस्यु जनपदों को जीतते हुए लोह, परम कांबोज, ऋषिक तथा परमऋषिक राजाओं को उन्होंने गहरी हार दो (सभा० २४, २३-२५)। इस संबंध में ऋषकों तथा परमऋषिकों की भौगोलिक स्थिति जानना बहुत आवश्यक है। इनकी स्थिति को जानने के लिये हमें अर्जुन के साथ साथ चलते हुए उस रास्ते पर आना चाहिए जहाँ से चढ़ाई करने को वह उत्तर की ओर बढ़ा। बाह्नीकों को जीतकर ( सभा० २३, २१ ) उसने दरद और कंबोज की संयुक्त सेना को (२३,२२) हराया। इस संबध में हमें कंबोज देश की स्थिति अवश्य जाननी चाहिए। इसका विवेचन पीछे किया गया है । इसमें संदेह नहीं कि कंबोज प्रदेश न तो चित्राल था न काबुल पर जैसा श्री जयचंद्र विद्यालंकार ने कहा है, वह बख्शा और प्राचीन पामीर प्रदेश था। अब हमें यह जानने की कोशिश करनी है कि
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