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उपायनपर्व का एक अध्ययन
१५१ किया गया है। यह माके को बात है कि यहाँ भी वे कबोजों के साथ ही हैं। पाठभेदों में ऋषिक का विशेषणात्मक रूप आर्षिक भी पाता है। सभा पर्व' (२४।२३-२४ ) में ऋषिकों की स्थिति कांबोज के उत्तरपूर्व की गई है। भांडारकर प्राच्य परिषद् के सभापर्व के संस्करण के पाठभेदों में ऋषिक के प्राकृत रूप इशि और इशी भी दिए हैं। इन रूपों के जानने को बहुत
आवश्यकता है। इनसे प्रकट होगा कि ग्रीक इतिहासकार संस्कृत और प्राकृत के दोनों रूपों से अभिज्ञ थे। इतनी विवेचना के बाद हमें पता चल जाना चाहिए कि महाभारत में ऋषिक का विशेषणात्मक रूप आर्षिक था, उसका प्राकृत रूप इषिक था तथा परम ऋषिक का विशेषणात्मक रूप परमार्षिक था। इससे पता चलता है कि ग्रीक इसियाई संस्कृत ऋषिक से और प्रोक असियाई संस्कृत वार्षिक से बना है। ग्रीक पसियानी की तुलना हम परम ऋषिकों से कर सकते हैं। मालूम पड़ता है कि ऋषिक और परम ऋषिक दोनों ही ऋषिक जाति के कबीले थे और इन सबके सहयोग से बाल्हीक पर आक्रमण हुआ होगा। अर्जुन के दिग्विजय को ओरं एक बार फिर निगाह दौड़ाने से यह प्रतीत होगा कि लोह, कांबोज तथा दस्युगणों की स्थिति उस प्रदेश में रही होगी, जिसे हम आज ताजिक गणतंत्र ( सोवियट रिपब्लिक ) के नाम से जानते हैं और जो कुछ ही दिन पहले बखान, शिग्नान, रोशन दर्वाज आदि छोटे छोटे राज्यों में विभक्त था। हमें इस बात का पता है कि १६० ई० पू० के लगभग यू-शी इशिकुल झोल के पास थे और उन्हें ह्यग्नू से हारकर भागना पड़ा। मालूम पड़ता है कि महाभारतकार ने ह्यग्नुओं की पराक्रम-शक्ति अर्जुन पर डाल दी। यू-शी तथा. पूर्वी ईरानी बोलनेवाली जातियों का सम्मेलन. ऑक्सस नदी पर अनहोनी घटना नहीं है। दोनों एक ही ईरानी नस्ल के थे।
इस संबंध में एक और माके की बात है। सभा० (२४।२४ ) में ऋषिकों के साथ परम, उत्तर विशेषण का प्रयोग हुआ है, जिसके माने बड़ा होता है और जो ता यू-शो का ठीक ठीक अनुवाद सा लगता है। उपायन पर्व (४७।१९) में निम्नलिखित जातियों का क्रम से वर्णन है-चीन, हूण, शक तथा श्रोड्। एक दूसरी जगह (४१२६ ) तुखार और कंक साथ दिए हैं।
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