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उपायनपर्व का एक अध्ययन [ लेखक-श्री डा. मोतीच'द्र, एम० ए०, पी-एच ० डी० ]
बहुत प्राचीन काल से हिंदुओं ने महाभारत को अभिलषितार्थचिंतामणि माना है। हिंदू धर्म तथा संस्कृति संबंधी शायद ही ऐसे कोई विषय हों जिन पर महाभारतकार ने प्रकाश न डाला हो । महाभारत की रचना कोई राजनैतिक या सामाजिक उद्देश्य को लेकर नहीं हुई थी, और न उसका उद्देश्य देश की भौगोलिक स्थिति पर प्रकाश डालना ही था। इसलिये महाभारत के
आदिपर्व, सभापर्व तथा अरण्यपर्व में जो कुछ भी भूगोल का वर्णन आया है वह प्रसंगवश ही है, और उसमें कोई विशेष तारतम्य नहीं है। प्रायः देशों, पर्वतों, नदियों के केवल नाम बिना किसी पते के दे दिए गए हैं। इससे यह बात स्पष्ट है कि महाभारतकारों का यह विश्वास था कि उनके समकालीन भारतीय अपने भूगोल को जानकारी रखते थे। ऐसी अवस्था में महाभारत की भूगोल की जटिल समस्या को सुलझाने के लिये हमें प्रीक, चीनी तथा मध्यकालीन अरब के भूगोलवेत्ताओं की शरण में जाना पड़ता है। प्राचीन भारत के भूगोल की खोज में मेसन, बने, वुड, सेंट मार्टिन, कनिंघम, होल्डिश तथा स्टाइन अग्रगण्य रहे हैं और उन्होंने भारतीय भूगोल संबंधी बहुत से कठिन प्रश्नों की खोज की है। पुरातत्त्व तथा उसके साथी विज्ञानों ने भी भारतीय भूगोल की गुत्थियों को सुलझाने में काफो सहायता दी है। पंजाब के बहुत से गणतंत्रों का पता हमको केवल उनके सिकों से मिलता है। भौगोलिक तत्त्वावधान के सबंध में हमें पुराणों से बहुत सहायता मिलनी चाहिए थी, परतु उनका पाठ इतना भ्रष्ट हो चुका है कि सिवा थोड़े-बहुत नामों के, जो अब भी प्रचलित हैं, बाकी नदियों, पहाड़ों तथा जनपदों का पता नहीं चलता। पुराणों के 'भुवनकोष' प्रायः रूदिगत हैं और ऐसा मालम होता है कि सूत्रकाल में भारतीय भूगोल का एक खाका खींचा गया और वही खाका हजारों वर्ष बाद भी ज्यों का त्यों टूटता-फूटता हमारे सामने चला
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