________________
उपायनपर्व का एक अध्ययन
१४३
बौद्ध पाली- साहित्य
लेकिन इसमें बिहार
आया। उसमें नई बातों का समावेश बहुत कम हुआ। में भारतीय भूगोल पर कुछ अधिक प्रकाश पड़ता है। तथा पूर्व युक्तप्रांत के भूगोल पर ही अधिक प्रकाश डाला गया है । जैसे-जैसे बौद्धधर्म की उन्नति होती गई तथा उसका विस्तार गंधार, अफगा निस्तान, मध्य एशिया तथा चीन में बढ़ता गया, वैसे-वैसे तत्कालीन बौद्ध साहित्य में उन प्रदेशों की भौगोलिक स्थिति पर भी थोड़ा-बहुत प्रकाश पड़ता गया। चीनी त्रिपिटक में भी कुछ ऐसा साहित्य सुरक्षित है जिससे पश्चिमाउत्तर प्रदेश तथा पंजाब के भूगोल पर प्रकाश पड़ता है। ऐसी दशा में भारतीय भूगोल के विद्यार्थी को काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है । एक ओर तो उसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण को हमेशा ध्यान में रखना पड़ता है और दूसरी ओर उसके पास साधन-सामग्री का अभाव रहता है। भाषा-शास्त्र
धुनिक भौगोलिक खोजों में काफी सहायता प्रदान करता है, लेकिन भौगोलिक खोजों में कभी-कभी इस सहायता से बहुत कुछ हानि भी पहुँचने की 'भावना रहती है। भिन्न भिन्न उच्चारणों के सहारे एक शब्द को दूसरे से मिलाने के लालच का संवरण बहुत कम लोग कर सकते हैं। लैसेन, सेंट मार्टिन तथा कनिंघम की पुस्तकों में प्रायः यह अवगुण काफी तादाद में मौजूद है । भाषाशास्त्र एक पथ-प्रदर्शन का काम कर सकता है लेकिन उसके नतीजों का मिलान दूसरे प्रमाण ग्रंथों से अवश्य कर लेना चाहिए ।
अंतर्गत 'उपायनपर्व' के भौगोलिक वर्णन
इस लेख में मैंने सभापर्व के के विवेचन का प्रयत्न किया है। राजसूय यज्ञ के समय बहुत सी जातियों तथा जनपद के प्रतिनिधि युधिष्ठिर को उपहार ( उपायन ) देने आए। कौटिल्य के अर्थशास्त्र के बाद महाभारत का यह पर्व अपनी काफी महत्ता रखता है । इसमें न केवल पश्चिमोत्तर प्रदेश, पूर्वी अफगानिस्तान, पंजाब तथा मध्य एशिया
भौगोलिक स्थिति का वर्णन है, बल्कि इसमें उन देशों को तत्कालीन आर्थिक अबस्था, उपज तथा व्यापारिक वस्तुओं का भी अच्छा वर्णन हुआ है। मैंने भांडारकर ओरियंटल रिसर्च इंस्टीच्यूट द्वारा संपादित सभापर्व की मदद अपने लेख में ली है। इस संस्करण की यह विशेषता है कि इसके पाठ बहुत ही शुद्ध हैं। जितने भी पाठभेद मिल सकते हैं वे पाद-टिप्पणियों में दे दिए गए हैं।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
बाद
में
www.umaragyanbhandar.com