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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
२७ - एक हरिचंद्र किसी प्रतापी राजा की कीर्ति गाता हैवक्त्रे साक्षात्सरस्वत्यधिवसति सदा शोण एवाधरस्ते
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बाहुः काकुत्स्थवीर्यस्मृतिकरणपटुर्द क्षिणस्ते समुद्रः । वाहिन्यः पार्श्वमेताः क्षणमपि भवता नैव मुञ्चन्ति राजन् स्वच्छेतो मानसेऽस्मिन्नवतरति कथं तायलेशाभिलाषः ॥ ४ ॥ हरिचंद्रस्य *
यही श्लोक स्वल्प पाठतिरों के साथ प्रबंधचिंतामणि में दो स्थानों पर मिलता है। पहला स्थान है विक्रमार्क प्रबंध और दूसरा स्थान है भोजभीमप्रबंध]। दूसरे प्रबंध में लिखा है कि यह श्लोक श्रीविक्रमार्क की धर्मवहिका पर लिखा था ।
यह श्लोक साहसांक-चंद्रगुप्त की स्तुति में हो कहा गया था और इसका कहनेवाला हरिचंद्र चंद्रगुप्त का साथी भट्टार हरिचंद्र ही था ।
सक्तिकर्णामृत का लेखक धन्यवाद का पात्र है कि जिसने इस श्लोक के कर्ता हरिश्चंद्र का नाम सुरक्षित कर दिया ।
२८ - सदुक्तिकर्णामृत में साहसांक के नाम से एक सूक्ति उद्धृत की गई है।
२९ -- जल्हण की सूक्तिमुक्तावली ॥ में राजशेखर का निम्नलिखित वचन है
शूरः शास्त्रविधेर्माता साहसाङ्कः स भूपतिः ।
सेव्यं सकललोकस्य विदधे गन्धमादनम् ॥
अर्थात् शूर और शास्त्रज्ञ महाराज साहसांक ने गंधमादन ग्रंथ रचा।
* सदुक्तिकर्णामृत, प्रवाहः तृतीय:, ५४|४|
+ सिंधी ग्रंथमाला, संस्करण, पृ० ८ पर D कोश का अधिक पाठ, संख्या १५ । + वही, पृ० २७ ।
५|१५|३|| लाहौर संस्करण, १०२८८ ।
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