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विक्रम संवत् और विक्रमादित्य
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निकट खींच लाया और कुछ ही महीनों बाद स्वदेश पहुँचने के पहले ही उसकी मृत्यु हो गई । छः फुट के धनुष पर नौ फुट का बाण छोड़नेवाले ये मालव अत्यंत पराक्रमी और स्वातंत्र्यप्रेमी थे । विदेशी सत्ता के प्रति उनका प्रतप्त क्रोध पंजाब में भली भाँति प्रकट हो चुका था । उसी की पुनरावृत्ति लगभग तीन सौ वर्ष बाद प्रथम शताब्दि ई० पू० में आकर अव ति में हुई जब कि शकस्थान के क्षहरातव ंशी शकों ने सुराष्ट्र पर आक्रमण किया । शिलालेख से यह निश्चय ज्ञात है कि प्रचंड मालवों से उनकी भिड़ंत हुई ।
दूसरी शताब्दि ई० पू० के लगभग हम मालवों को जयपुर रियासत में बसा हुआ पाते हैं । कर्कोट नगर इन मालवों का प्रधान केंद्र था जहाँ उनके अनेक सिक्के मिले हैं। इन सिक्कों पर 'मालवानां जय:' विरुद अंकित है । ये मालव पंजाब से यहाँ आकर बसे थे। यूनानी आक्रमण के बाद कई गणराज्य पंचनद से होकर राजपूताने की ओर चले आए। उनमें से चित्तौड़ के समीप नगरी स्थान में शिवि जनपद के लोग आकर बसे और जयपुर रियासत में मालवगण ने सन्निवेश किया । यह बात सिक्कों की सामग्री से प्रमाणित होती है ।
लगभग सौ डेढ़ सौ बरस तक मालव सुख-शांति से निवास करते रह होंगे, जब कि ई० पू० प्रथम शताब्दि के लगभग एक नया भय उपस्थित हुआ । शकस्थान के शकों की क्षहरात नामक शाखा ने पश्चिमी भारत की ओर बढ़कर
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राष्ट्र पर आक्रमण किया और कुछ काल के लिये वहाँ अपना दखल जमा लिया । इस वंश के दो राजाओं के सिक्के और लेख मिले हैं। इनमें पहला भूमक और दूसरा नहपान था । क्षहरात शकों के इस आक्रमण की एक धारा तक्षशिला के मार्ग से घुसती हुई मथुरा तक पहुँची लेखों और सिक्कों से तक्षशिला और मथुरा के क्षहरात घरानों का भी परिचय मिलता है । मथुरा में क्षहरात महाक्षत्रप राजुबुल और शोडास ने दो पीढ़ी तक राज्य किया । तक्षशिला में इसी समय महाक्षत्रप लिक और पतिक का राज्य था जो मथुरा के शकों से सब ंधित भा थे। शकों का यह त्रिशूलो आक्रमण कुछ टिकाऊ नहीं हुआ, किंतु करारा अवश्य था । नहपान के जो लेख नासिक की गुफा में मिले हैं उनसे विदित होता है कि उत्तमभद्रों और मालवों में कुछ
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