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विक्रमादित्य . [लेखक-डा० राजबली पांडेय, एम० ए०, डी० लिट् ] .
जनश्रुति-मर्यादापुरुषोत्तम राम और कृष्ण के पश्चात् भारतीय जनता ने जिस शासक को अपने हृदय-सिंहासन पर आरूढ़ किया है वह विक्रमादित्य है। उनके आदर्श न्याय और लोकस ग्रह की कहानियाँ भारतवर्ष में सर्वत्र प्रचलित हैं और बाबाल वृद्ध सभी उनके नाम और यश से परिचित हैं। उनके सबंध में यह प्रसिद्ध जनश्रुति है कि वे उज्जयिनीनाथ गंधव सेन के पुत्र थे। उन्होंने शकों को परास्त करके अपनी विजय के उपलक्ष में सवत् का प्रवर्तन किया था। वे स्वयं काव्यमर्मज्ञ तथा कालिदास आदि महाकवियों के आभयदाता थे। भारतीय ज्योतिषगणना से भी इस बात की पुष्टि होती है कि ईसा से ५७ वर्ष पूर्व विक्रमादित्य ने विक्रम संवत् का प्रचार किया था।
अनुभूति-भारतीय साहित्य में अंकित अनुश्रुति ने भी उपर्युक ननभुति को किसी न किसी रूप में स्वीकार किया है। इनमें से कुछ का उल्लेख नीचे किया जाता है :
(१) अनुश्रुति के अनुसार विक्रमादित्य का प्रथम उल्लेख गाथासप्तशती में इस प्रकार मिलता है
संबाहण सुह रस तोसिएण देन्तेण तुह करे लक्खम् ।
चलणेण विश्कमाहत्त चरि अणुसिक्खिनं तिस्सा ॥ ५॥६४ इसकी टीका करते हुए गदाधर लिखते हैं-"पक्षे संवाहणं संबाघमम् । लक्खं लक्षम्। विक्रमादित्योऽपि भृत्यक केन शत्रुसबाधनेन तुष्टः सन् भृत्यस्य करे लक्ष ददातीत्यर्थः।" इससे यह प्रकट होता है कि गाथा के रचनाकाल में यह बात प्रसिद्ध थी कि विक्रमादित्य नामक एक प्रतापी तथा उदार शासक थे जिन्होंने शत्रों के ऊपर विजय के उपलक्ष में भृत्यों को लाखों का उपहार दिया था। गाथा-सप्तशती का रचयिता सातवाहन राजा हाल प्रथम शताब्दि ईस्वी पश्चात हुआ था। अतः इसके पूर्व विक्रमादित्य की ऐति
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