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विक्रम संवत् विक्रम का नाम कैसे चल पड़ा? यह नया नाम क्यों और कैसे चल पड़ा ? इसका निश्चित और निर्णायक उत्तर देना आज तो कम से कम अशक्य है। इस समय तक मालव लोगों की सत्ता और शासन-प्रणाली भंग हो चुकी थी, अतएव किसी प्रसिद्ध राजा के नाम से इस संवत् का नामाभिधान कर दिया जाय यह बात लोगों के मन में जम गई। इस समय तक सारे भारत में पाँचवीं शताब्दि के गुप्तसम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय का यश- उसकी दानशूरता, विद्वत्ता तथा शकपराजय के कारण-गाया जा रहा था। साथ ही यह राजा विक्रमादित्य' नाम से प्रसिद्ध भी था। गुप्तों का स्वयं स्थापित गुप्त सवत इस समय लुप्त हो चला था। अतएव यह सोचकर, कि मालव संवत को यदि विक्रम संवत नाम दिया जाय तो वह केवल प्रादेशिक न होकर सर्वमान्य भी होगा
और इस प्रकार एक नए शकारि का ही गौरव होगा, लोगों ने इसे विक्रम संवत कहना प्रारभ किया होगा ।
प्रथमत: यह नाम उतना लोकप्रिय नहीं हुआ। आठवीं, नवीं और दसवीं शताब्दियों के लगभग ५२ शिलालेख मिलते हैं पर'तु उनमें केवल तीन ही स्थलों पर इसे विक्रम संवत कहा गया है । ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दियों में वि० स नाम अधिक लोकप्रिय हुआ। इसका अधिकतर अय गुजरात के चालुक्य नरेशों को दिया जाना चाहिए। सयुक्तप्रांतांतर्गत गहेढ़वाल राज्य के इस समय के लेखों में विक्रम संवत का ही उपयोग किया गया है, परंतु वहाँ भी उसे केवल संवत या संवत्सर ही कहा गया है, विक्रम के साथ उसका सबध नहीं दिखाया गया है। चालुक्यों ने तो इस सवत के विक्रम नाम की
* अब यह भी माना जा सकता है कि जिस कृत नामक प्रजाध्यक्ष ने इस संवत् की स्थापना की उसका उपनाम ( दूसरा नाम ) विक्रमादित्य था और नवीं शताब्दि के ऐतिहासिकों ने संवत् को वह नाम देकर उसका पुनरुज्जीवन किया। पर यह अधिक संभव नहीं। यदि ऐसी ही बात थी लो प्रारंभ से ही वह नाम क्यों नहीं दिया गया ? नवीं शताब्दि के लोगों को यह बात कैसे ज्ञात हो गई। विक्रमादित्य नाम प्रथम शताब्दि में इतना लोकप्रिय भी न था, यह बात भी उल्लेखनीय है।
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