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बिक्रम संवत्
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कृतसंज्ञिते) ऐसा किया गया है । sara इसमें कोई शंका नहीं कि आज तक उपलब्ध इस संवत् के नामों में 'कृत' नाम सबसे प्राचीन है । संवत् ४६१ के पूर्व के किसी भी शिलालेख में इसे मालव संवत् नहीं कहा गया 1 अत्यधिक प्राचीन अर्थात् तीसरी-चौथी शताब्दि के छहों लेखों में से प्रत्येक में इस संवत् को कृत संवत् ही कहा गया है, यह बात उपयुक्त अव तरणों (७-१२ ) से स्पष्ट हो जाती है। आगे चलकर कुछ काल तक यह सवत् मालव और कृत इन दोनों नामों से प्रसिद्ध था। पर तु पाँचवीं शताब्दि के अंत में कृत नाम हटकर मालव नाम ही रूढ़ हुआ। आगे चलकर नवीं शताब्दि में 'मालव संवत्' नाम भी अप्रसिद्ध होने लगा और उसका स्थान विक्रम संवत् ने ले लिया ।
'कृत' नाम की उपपत्ति
कृत वर्ष के - बनावटी वर्ष, बीता हुआ वर्ष, चतुर्वार्षिक युगों का प्रथम वर्ष, इत्यादि - अर्थ किस प्रकार अमाय हैं इसका निर्देश ऊपर हो ही चुका है । मेरी यह धारणा है कि कृत नामक किसी राजा अथवा अधिनेता ने इसकी नींव डाली और उसी के कारण इसे कृत संवत कहा जाने लगा। जिस प्रकार 'छत्रपति शक' छत्रपति शिवाजी महाराज ने प्रारंभ किया, चालुक्य विक्रम शक विक्रमादित्य ने ( ११७५ में ) शुरू किया, हर्ष शक की नींव हर्ष ने डाली, गुप्त संवत् गुप्त सम्राटों के नाम से प्रसिद्ध हुआ, उसी प्रकार 'कृत संवत्' कृत नामक किसी अधिपति या महान् व्यक्ति ने स्थापित किया, ऐसा मानने में क्या हानि है ? इस पर कहा जा सकता है कि 'कृत' किसी व्यक्ति का नाम था यह बात प्रसिद्ध नहीं है, यही इस उपपत्ति में बड़ा भारी दोष है । परंतु वास्तव में यह आक्षेप भी अकाट्य नहीं है। यह सत्य है कि गत १०००, १५०० वर्षों में कृत नामक कोई अधिपति नहीं हुआ है, पर ंतु यदि हम पुराणों की ओर दृष्टिपात करते हैं, तब देखते हैं कि कृत नाम का भी काफी बोलबाला था। विश्वेदेवों में से एक का नाम कृत था, वसुदेव-रोहिणी के एक पुत्र का भी नाम कृत था, हिरण्यनाभ का इसी नाम का शिष्य था और परिश्वर के पिता को भी इसी नाम से संबोधित करते थे। इसलिये यह
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