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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
होता है । इन दो प्रकार के
सत्यों को प्राप्त करने के लिये जीवन के कटिबद्ध व्रत का नाम दीक्षा है। दीक्षित व्यक्ति पहली बार सत्य की ओर आँख से आँख मिलाकर देखता है। दीक्षा के अनंतर जीवन में जो साधना की जाती है वही तप है। अनेक विद्वान् और ज्ञानी सत्य के किसी एक पक्ष को प्रत्यक्ष करने की दीक्षा लेकर जीवन में घोर परिश्रम करते हैं, वही उनका । इस तप के फल का विश्वहित के लिये विसर्जन करना यज्ञ है । इन पाँचों को जीवन में प्राप्त करने या अनुप्राणित करने की जो भावना है वही ब्रह्म या ज्ञान है ।
तप
इन आदर्शों में श्रद्धा रखनेवाले पूर्व ऋषियों ने अपने ध्यान की शक्ति से ( मायाभिः ) इस पृथिवी को मूर्त रूप प्रदान किया, अन्यथा यह जल के नीचे छिपी हुई थी। वे ही ऋषि आदर्शो के संस्थापक हुए जिन्होंने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सब तरह से नया निर्माण किया । उन निर्माता पूर्वजों (भूतकृतः ऋषयः ) ने यज्ञ और तप के साथ राष्ट्रीय सत्रों में जिन वाणियों का उद्घोष किया वहीं यह वैदिक सरस्वती भारतीय ब्रह्म-विजय की ऊँची शाश्वती पताका है। श्रुति महती सरस्वती के कारण ही हमारी पृथिवी सब भुवनों में अग्रणी हुई, इसी कारण ऋषि ने उसे 'अप्रत्वरी' ( आगे जानेवाली) - विशेषण दिया है। मातृभूमि के इसी अग्रणी गुण को अर्वा - चीन कवि ने 'प्रथम प्रभात उदय तव गगने' कहकर प्रकट किया है। जो स्वयं सबसे आगे है वहीं अपने पुत्रों के प्रथम स्थान में स्थापित कर सकती है ( पूर्व पेये दधातु ) । अपनी दुर्धर्ष ब्रह्म विजय के आनंद में विश्वास के साथ मस्तक ऊँचा करके प्रत्येक पृथिवी - पुत्र इस प्रकार कह सकता है - 'मैं विजयशील हूँ, भूमि के ऊपर सबसे विशिष्ट हूँ, मैं विश्वविजयी हूँ और दिशा - विदिशाओं में पूर्णत: विजयी हूँ'
त्वरी ( अ + इत्वरो ) लीडर ऐंड हेड प्रॉव् श्रॉल
* भुवनस्य
दी वर्ल्ड (ग्रिफिथ, अथर्व • १२ | १ | ५७ )
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