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नागरीप्रचारिणी पत्रिका तश्तरी है, जिसमें शिल्पी ने बहुत ही मार्मिक ढंग से भारत देश का मूर्त अंकन किया है। उसकी कला की परिभाषा अर्थ से भरी हुई होने पर भी मन पर एकदम सीधा प्रभाव डालती है। उसको अर्थाने के लिये प्रायास की आवश्यकता नहीं। रोमन नागरिक उसके संकेतों को तुरत समझ लेते होंगे।
अभी हाल में पापियाई की खुदाई में भी कुछ मिट्टी की मूर्तियाँ मिली हैं, जिनमें से एक भारतीय स्त्री की है जो अपने आभूषण और वेष-भूषा के कारण स्पष्ट पहचानी जाती है।
रोमन साम्राज्य के साथ भारतीय संस्कृति के संबंध के और भी अनेक उदाहरण मिलते हैं। मिस्र देश के अह्रास नामक स्थान में (इसका प्राचीन नाम हेराक्लिोपोलिस मैगना था) प्रस्नेतन और मेमफिस के बीच में नील नदी के बाएँ किनारे पर कला की बहुत सी सामग्री उपलब्ध हुई है, जिसमें भारतीय प्रभाव स्पष्ट है। इस सामग्री का विशेष वर्णन द विलार्ड ने अपनी पुस्तक अह्नास की शिल्पकला ( La Sculture ad Ahnas ) में किया है और मिस्र और भारत के सबंध विषयक अनेक प्रमाण-प्रथों की पूरी सूची भी दी है। पिलडर्स पिट्री को अह्रास में रोमदेशीय कला का एक मिट्टी का खिलौना भी प्राप्त हुआ था, जो एक भारतीय की मूर्ति है। [कुमारस्वामी, अमेरिकन प्राच्य-परिषद् की पत्रिका, भाग ५१, पृ० १८१]
पाद-टिप्पणी-इम रजत-पात्री का रेखा-चित्र वार्मिग्टन की पुस्तक 'रोम और भारत का व्यापारिक संबंध' (इंटरकोर्स बिटविन इंडिया ऐंड दी रोमन वर्ल्ड) नामक पुस्तक के १४२ पृष्ठ में दिया गया है। रोस्टोजोफ कृत 'सोशल ऐंड एकोनॉमिक हिस्ट्री श्रॉफ रोमन इंपायर' मथ में भी यह चित्र प्लेट १७ पर उद्धृत है। 'विक्रमांक' का रेखाचित्र वार्मिग्टन की पुस्तक के आधार पर चित्रकार श्री रवींद्र चक्रवर्ती ने बनाया है।
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