________________
गुप्त-युग में मध्यदेश का कलात्मक चित्रण
[ लेखक-श्री वासुदेवशरण अग्रवाल ] मध्यदेश किवा आर्यावत गुप्तों के साम्राज्य का हृदय-केद्र था। प्रयाग की दिग्विजय-प्रशस्ति के अनुसार समुद्र गुप्त ने पाटलिपुत्र से प्रारंभ करके अपने पराक्रम का क्रमिक विस्तार आर्यावर्त की ओर फैलाया। रुद्रदेव, मतिल, नागदत्त, चंद्रवर्म, गणपतिनाग, नागसेन, अच्युत, नदि, बलवर्म-इन नौ आर्यावर्त के प्रमुख राजाओं को प्रसभोद्धरण की नीति से बलपूर्वक उखाड़कर दिग्विजयी सम्राट ने सर्वप्रथम आर्यावर्त में अपने प्रभाव को महान् बनाया। प्रशस्ति के गुणवान् कवि हरिषेण ने लेख के अंतिम श्लोक में सार्थक ढंग से कहा है कि भट्टारकपादीय सम्राट का यश उनकी भुजाओं के विक्रम से इस प्रकार लोक में अमेक मागों से फैला, जिस प्रकार शिव की जटाओं से छूटकर शुभ्र गंगाजल तीनों लोकों को पवित्र करता हुआ फैला है।
___ गंगा और यमुना के बीच की पवित्र अंतवे दो गुप्त-सम्राज्य की एक मुक्ति बनी। गंगा के साथ गुप्त-साम्राज्य का एक प्रकार से अभेद सबंध हो गया। पुराणों में गुप्त-राज्य के विस्तार को गंगा के भूगोल द्वारा ही प्रकट किया गया है
अनुगंगा प्रयागं च साकेतं मगधांस्तथा ।
एतान्जनपदान् सर्वान् भोक्ष्यन्ते गुप्तवंशजाः ॥ (वायुपुराण) । इनमें मगध और प्रयाग गंगा के हो कूलवर्ती जनपद हैं। साकेत कोशल जनपद का प्रतीक है। और 'अनुगंगा' पद से गंगा के तटवर्ती उन जनपदों का आशय ज्ञात होता है जो प्रयाग और हरिद्वार के बीच में थेविशेषतः पांचाल जनपद और कुरु जनपद के कुछ भाग, जहाँ से समुद्र गुप्त ने मतिल, अच्युत तथा अन्य राजाओं का उन्मूलन किया था।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com