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लम्प्सकस से प्राप्त भारत - लक्ष्मी की मूर्ति
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नस्ल के भारतीय कुत्ते हैं, जिनकी कीर्ति किसी समय यूनान तक पहुँची थी, और जिनका वर्णन प्लिनी और डायोडोरस आदि लेखकों ने विस्तार से किया है । ये भयंकर जाति के कुत्ते बाघों और शेरों से बराबरी की टक्कर लेते थे। सिकंदर के सामने भी इनकी शक्ति का प्रदर्शन कराया गया था । कुत्तों की यह
केकय देश में तैयार की जाती थी, और अभी तक जीवित है। ननिहाल से बिदा होते समय भरत को केकयराज ने इस प्रकार के कराल डाढोंवाले बड़े डीलडौल के कुत्ते भेंट किए थे जिनमें घावों जैसा बल था और जो राजमहल में ही पालपोस कर तैयार किए जाते थे—
'अंतःपुरेऽतिसंवृद्धान् व्याघ्रवीर्यबलोपमान् । ट्रायुक्तान्महाकायान् शुनश्चोपायनं ददौ ।'
( अयोध्याकांड, ७०/११ )
are ही भारतवर्ष के पशु- व्यापार में इस नस्ल के कुत्तों का प्रमुख स्थान रहा होगा ।
कुर्सी के सामने दो हिंस्र पशुओं को पालतु रूप में दो व्यक्ति पकड़े हुए खड़े हैं। इनमें से दाहिनी ओर सिंह और बाईं ओर तेंदुआ है। इनके रक्षक धोती और उत्तरीय पहने हैं, सिर पर पगड़ी है। इनकी पगड़ी में भी खूँटियाँ जैसी दिखाई पड़ती हैं।
भारत के समृद्ध व्यापार का रोम-साम्राज्य में विशेष स्थान था । व्यापारियों के द्वारा इस देश का एक आकर्षक रूप रोम साम्राज्य की जनता में विश्रुत हो गया था ।
इसी समय अनेक भारतीय दूत- मंडल रोम-सम्राटों के पास आते-जाते थे। एक प्रणिधि-वर्ग सम्राट् अगस्टस के दरबार में भी पहुँचा था । ऐसे सम्मानपूर्ण वातावरण में भारतीय जनता और भारत देश के प्रति रोमीय जगत् में विशेष रुचि का होना स्वाभाविक है । उसी की तृप्ति के लिये अनेक कला के उदाहरण तैयार किए गए होंगे। उनमें से एक विशिष्ट उदाहरण यह चाँदी की
* मैकू किंडिल, अलेक्जेंडर्स इन्वेजन, पृ० ३६३ ( परिशिष्ट ) ।
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