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नागरीप्रचारिणो पत्रिका न हो तो सृष्टि का अंत हो जाय। संवत्सर भी विष्णु का एक रूप है। तीन ऋतुओं के तीन चरणों से संवत्सर अपने कल्याणों की सृष्टि और वृष्टि करता है। वसंत, प्रोष्म और शरद् इनमें से किसी भी ऋतु का यदि विपर्यय हो, . तो प्रजाओं के हित के लिये प्रवर्तित चक्र का खंडन होने लगता है। प्रत्येक वर्ष में संवत्सर कितनी अधिक प्राणि-संपत्ति और सस्य-संपत्ति को जन्म देता है ? अनेक वीर्यवती ओषधियां, महान् वृक्ष और वनस्पति संवत्सर के विक्रम का फल पाकर उत्पन्न हाते और बढ़ते हैं। संवत्सर स्वरूप से वामन है। उसके तीन चरण बारह महीनों की परिमित अवधि में समाप्त हो जाते हैं, परंतु इन्हीं चातुर्मास्य के बौने चरणों से संवत्सर रूपी विष्णु ने महाकाल के अनंत विस्तार को नाप रखा है। जो वामन था, वह वस्तुत: अपने भीतर विष्णु का रूप लिए हुए था—'वामनो ह विष्णुगस', शतपथ १।२।५।५ ।
वामन और विष्णु के संबंध का नित्यरूपक संवत्सर और अनंत काल के पारस्परिक संबंध से भली भांति प्रकट होता है। अनंत काल सहस्रशोर्षा पुरुष है। संवत्सर विष्णु है। विष्णु के समान संवत्सर भी अपरिमित बल से युक्त है, उसकी प्रेरणा से मानवीय इतिहास अप्रसर होता रहता है। जिस प्रकार विष्णु के यश का गान हमारा कर्तव्य है, उसी प्रकार संवत्सर का अभिनंदन और सम्मान भी आवश्यक कर्तव्य है।
ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार यज्ञ और यजमान भी विष्णु के रूप हैं । (शतपथ ६७।२।१०-११)। प्रातः सवन, माध्यंदिन सवन और सायं सवन, इन तीन भागों में यज्ञ के कर्मकांड की पूर्ति होती है, जो विष्णु के तीन चरणों के समान हैं। हमारा वैध-यज्ञ विराट् सृष्टि के विधान और मानवीय जीवन की ही अनुकृति है। शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि यजमान विष्णु बनकर अपने जीवन के लोकों को अपनी यात्रा से नापता है। यह उसका बड़ा भारी वैष्णव विक्रम है। मनुष्य के विक्रम से जीवन में कितने अधिक निर्माण और उत्पादन का कार्य होता है ?
मनुष्यों के समुदाय अर्थात् राष्ट्र में भी विष्णु का स्वरूप चरितार्थ देखा • जाता है। राष्ट्र का विक्रम विष्णु के विक्रम से कम महिमाशाली नहीं कहा
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