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विष्णु का विक्रमण
[ लेखक-श्री वासुदेवशरण] इदं विष्णुविचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पांसुरे ॥
विष्णु का त्रिविक्रम संसार का सबसे बड़ा साका है। विष्णु वामन थे, विक्रम करने से विराट् हुए । जो विक्रम करता है वह भी विष्णु की तरह वामन से विराट् हो जाता है, वह महान् बनता है और लोक में फैलता है। सृष्टि का महान् देव विष्णु है, जिससे इस जगत् की स्थिति हैं। उस विष्णु के पराक्रम से यह अद्भुत संसार रचा गया है। विष्णु ने पार्थिव लोकों को फैलाकर एममें अनंत सौंदर्य, वैचित्र्य और रहस्य भर दिया है। यह विश्व आकर्षण
और रस का अधिष्ठाम है। सर्ग, स्थिति और नारा, ये विश्वव्यापी विष्णु के तोन दुर्धर्ष क्रमण या चरण हैं, जिन्होंने सारे संसार और मानवी जीवम को नाप रखा है। विश्व में कुछ भी ऐसा नहीं है जो इन चरणों के नीचे म हो। काल के एकरस क्रम में विष्णु के द्वारा ही विश्राम का भाव भरी गया। विष्णु का त्रेधाविचंक्रमण शांत काल का विक्षोभ है।
विष्णु का महान् पराक्रम एक क्षण के लिये भी मंद महीं होता। विष्णु सत्य ही गुडाकेश है, जो नीद को जीतकर विमिन्द्र वीर्य से इस जगत् का सचालन करता है। विष्णु के बलों के स्रोत विश्व के रोम रोम से प्रकर हो रहे हैं। सूर्य और चद्र, पृथिवी और धुलोक, मेघ और समुद्र, इनकी स्थिति और विघटन विष्णु के नियमों पर ही निर्भर है।
वैदिक अर्थ-पद्धति के अनुसार संवत्सर या सूर्य का नाम विष्णु है। सूर्य में जो विक्रम है उसे प्रतिदिन हम देखते हैं। प्रातःकाल, मध्याह्न और सायंकाल, ये उसके तीन चरण हैं। अनंत चराचर को प्राण-वृष्टि से अमृत और जीवन प्रदान करना यह सूर्यरूपी विष्णु का विक्रम है। सूर्य का विक्रम .
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