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देश का नामकरण [ लेखक-श्री वासुदेवशरण अग्रवाल ]
भारत वायु पुराण के अनुसार हमारे देश का नाम भारतवर्ष है, और इसमें बसनेवाली जनता का नाम भारती प्रजा है। भारतवर्ष का भौगोलिक विस्तार समुद्र के उत्तर और हिमवान् के दक्षिण में कहा गया है
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमवद्दक्षिणं च यत् । वर्ष यद्भारतं नाम यत्रेय भारती प्रजा ॥
(वायु. ४५/७५) इसी पुराण के एक अन्य श्लोक में कुमारिका अंतर्गप से लेकर हिमालय में गंगा के प्रभव-स्थान तक फैला हुआ भूप्रदेश भारतवर्ष में सम्मिलित माना गया है-आयतो ह्याकुमारिक्यादागंगाप्रभवाच्च वै ।४५।८१ ।
पूर्व के महोदधि. और पश्चिम के रत्नाकर नामक दो समुद्रों का जहाँ संगम है उसके समीप ही कुमारी अंतरीप है, जहाँ तपश्चर्या में निरत कुमारों पार्वती गंगा के प्रभवस्थान हिमाचल के देवदारु वृक्षों की वेदिका में समाधिस्थ भगवान् शंकर के ध्यान में अहर्निश लीन रहती हैं। देश के उत्तर-दक्षिण के दो बिंदुओं में संतत चारिणी विद्युत्-शक्ति की एक अत्यंत रमणीय कल्पना शिव और पार्वती के इस रूपक के द्वारा की गई है। देश की भूमि केवल पार्थिव परमाणुओं की राशि तो है नहीं, उसमें एक चेतन प्राणधारा जो कुंडलिनी की तरह सजग है, ओतप्रोत है। इसका अर्थ यह है कि उत्तर से दक्षिण तक देश के किसी भाग में होनेवाली घटना राष्ट्र के समस्त चैतन्य का स्पर्श करती है।
• आधुनिक बंगाल की खाड़ी का पुराना नाम महोदधि और अरब सागर का पुराना नाम रत्नाकर है।
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