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नागरीप्रचारिणी पत्रिका -उस राजा परिक्षित् की, जो सारे जन का स्वामी है, जो देवतारूप है और मनुष्यों में बढ़कर है, सुदर स्तुति सुनो जो उसकी सब प्रजाओं को प्रिय है।
८-राज्य के आसन पर विराजते ही परिक्षित् ने, जो सब में गुणवान् है, ऐसा योग-क्षेम किया जैसा पहले कभी नहीं हुआ था। यह वाक्य कुरुदेश का निवासी एक पति घर बसाते समय अपनी पत्नी से कहता है।
९-'दही, दूधिया सत्तू और आसव इनमें से आपके लिये क्या लाऊ ' यह परिक्षित् राजा के राज्य में पत्नी अपने पति से पूछती है।
१०-गले से निगरता हुआ जो आकाश में सूर्य की ओर जैसे बढ़ता है, ऐसे ही परिक्षित् गजा के राष्ट्र में सुख से सब जन बढ़ते हैं।
राजा परिक्षित् के राज्य की यह सुख-समृद्धि उनके महान विक्रम की द्योतक है। परिक्षित् के राज्य का भौगोलिक विस्तार उनके विक्रम की सच्ची माप नहीं है। उनके पराक्रम की महिमा राष्ट्र में रहनेवाले जन के भद्र या. कल्याण से नापी जा सकती है कि चक्रवर्तियों के विक्रम का सच्चा आदर्श था। एक अश्वपति कैकेय देश जीतने के लिये अग्रसर नहीं होता, परंतु वह अपने राज्य के आसन पर विराज कर जब यह प्रतिज्ञा करता है कि मेरे जनपद का कोई व्यक्ति आचार में शिथिल नहीं है, तो वह अपनी वाणी के तेज से विक्रम के वास्तविक अर्थों को प्रकाशित करता है। ऐसा विक्रम धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में जो चाहे कर सकता है। प्रत्येक व्यक्ति जीवन के जिस चक्र में स्थित है, उसके एकछत्र चक्रवर्ती पद को विक्रम के द्वारा प्राप्त कर सकता है।
* मन्थ अर्थात् दूध में जौ के सत्तू चलाकर बनाया हुआ पेय । + "न मे स्तेनो जनपदे न कदयों न मद्यपः ।
नानाहिताग्नि विद्वान् न स्वैरी स्वैरिणी कुतः १".
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