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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
होती है । पृथिवी के भौतिक रूप में प्रजाएँ जितना अधिक रस लेती हैं उनका
जीवन उतना ही रस-पोषित होता है ।
प्रजाओं के जीवन की दीक्षा भी मेरा प्राणभाग है। जीवन का कौशल यही हैं कि उसमें ज्ञान और कर्म की होती रहे ।
मेरी दृष्टि में निर ंतर सिद्धि
राष्ट्र में जागती
अन्यथा उन्हें ध्यान
इस प्रकार त्रिविध प्राणों की आराधना से प्रजा मेरी अनुभूति उनके मन में जागती रहती है । भी नहीं होता कि मेरा अस्तित्व उनके साथ है या नहीं। विष्णु के तीन चरणों की तरह मेरे भी तीन विक्रम हैं। उन तीन विक्रमों को पूरा करके ही जीवन सफल होता है । भूमि, भूमि पर बसनेवाली प्रजाएँ और प्रजाओं में रहनेवाला ज्ञान- इन तीनों को कल्याण पर परा ही मानों मेरी तीन ऋतुओं का मंगल-विधान है । मेरा समस्त जीवन ऋतुमय है। वस ंत, प्रीष्म और शरद इनका पर्याय क्रम इतिहास के चक्र को सतत घुमाता है । प्रत्येक संस्कृति को प्रभात, मध्याह्न और संध्याकाल के चक्र का अनुभव करना पड़ता है। शरद के अनंतर वस ंत का निश्चित आगमन मेरा सबसे बड़ा देवतुल्य प्रसाद है ।
मेरे विक्रमांकित स्वरूप के स्मरण और अभिनंदन का यही उपयुक्त अवसर है। मेरे अभिनंदन से प्रजा स्वस्तिमती हो, यह मेरा आशीर्वाद है ।
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