Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ खण्ड 1, प्रकरण : 2 २-श्रमण-परम्परा को एकसूत्रता और उसके हेतु 46 कीटों, पतंगों और चीटियों तक में जातिमय लक्षण हैं, जिससे उनमें भिन्न-भिन्न जातियाँ होती हैं। छोटे, बड़े जानवरों को भी जानो, उनमें भी जातिमय लक्षण हैं ( जिससे ) भिन्नभिन्न जातियाँ होती हैं। फिर पानी में रहने वाली जलचर मछलियों को भी जानो, उनमें भी जातिमय लक्षण हैं, (जिनसे) भिन्न-भिन्न जातियाँ होती हैं। ____ आकाश में पंखों द्वारा उड़ने वाले पक्षियों को भी जानो, उनमें भी जातिमय लक्षण हैं, ( जिससे ) भिन्न-भिन्न जातियाँ होती हैं। जिस प्रकार इन जातियों में भिन्न-भिन्न जातिमय लक्षण हैं, उस प्रकार मनुष्यों में भिन्न-भिन्न जातिमय लक्षण नहीं हैं / दूसरी जातियों की तरह न तो मनुष्यों के केशों में, न शिर में, न कानों में, न आँखों में, न नाक में, न ओठों में, न भौंहों में, न गले में, न अंगों में, न पेट में, न पीठ में, न पादों में, न अंगुलियों में, न नखों में, न जंघों में, न उरुओं में, न श्रेणि में, न उर में, न योनि में, न मैथुन में, न हाथों में, न वर्ण में और न स्वर में जातिमय लक्षण हैं। (प्राणियों की) भिन्नता शरीरों में है, मनुष्य में वैसा नहीं है। मनुष्यों में भिन्नता नाम मात्र की है। बासेठ ! मनुष्यों में जो कोई गौ-रक्षा से जीविका करता है, उसे कृषक जानो न कि ब्राह्मण / वासेठ ! मनुष्यों में जो कोई नाना शिल्पों से जीविका करता है, उसे शिल्पी जानो न कि ब्राह्मण / . . वासेठ ! मनुष्यों में जो कोई व्यापार से जीविका करता है, उसे बनिया जानो न कि. ब्राह्मण। वासेठ ! मनुष्यों में जो कोई चोरी से जीविका करता है, उसे चोर जानो न कि ब्राह्मण / वासेठ ! मनुष्यों में जो कोई धनुर्विद्या से जीविका करता है, उसे योद्धा जानो न . कि ब्राह्मण। . वासेठ ! मनुष्यों में जो कोई पुरोहिताई से जोविका करता है, उसे पुरोहित जानो न कि ब्राह्मण / __वासेठ ! मनुष्यों में जो कोई ग्राम या राष्ट्र का उपभोग करता है, उसे राजा जानो न कि ब्राह्मण / . ब्राह्मणी माता की योनि से उत्पन्न होने से ही मैं (किसी को) ब्राह्मण नहीं कहता। जो सम्पत्तिशाली है (वह) धनी कहलाता है, जो अकिंचन है, तृष्णा रहित है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ।