Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ खण्ड 2, प्रकरण : 5 सभ्यता और संस्कृति . 435 .. चिकित्सा के चार मुख्य पाद माने गए हैं-(१) वैद्य, (2) रोगी, (3) औषधि, और (4) प्रतिचर्या करने वाले।' विद्या और मंत्रों, शल्य-चिकित्सा तथा जड़ी-बूटियों से भी चिकित्सा की जाती थी। इनके विशारद आचार्य यत्र-तत्र सुलभ थे। ___अनाथी मुनि ने मगध सम्राट राजा श्रेणिक से कहा- "जब मैं अक्षि-वेदना से अत्यन्त पीड़ित था तब मेरे पिता ने मेरी चिकित्सा के लिए वैद्य, विद्या और मंत्रों के द्वारा चिकित्सा करने वाले आचार्य, शल्य-चिकित्सक और औषधियों के विशारद आचार्यों को बुलाया था। ___पशु-चिकित्सा के विशेषज्ञ भी होते थे। किसी एक वैद्य ने चिकित्सा कर एक सिंह की आँखें खोल दीं। - वैद्य को प्राणाचार्य भी कहा जाता था। - रसायनों का सेवन करा कर चिकित्सा की जाती थी। मंत्र और विद्या - यह वीर-निर्वाण के छठे शतक की बात है। अंतरंजिया नगरी में एक परिव्राजक रहता था। वह अपने पेट,को लोहे की पट्टी से बाँधे रखता और जम्बू-वृक्ष की एक टहनी को अपने हाथ में लेकर घूमता था। लोग उससे इसका कारण पूछते तो वह कहता-"ज्ञान से पेट फूट न जाए इसलिए पेट को लोहे से बाँधे रखता हूँ और इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप में मेरा कोई प्रतिपक्षी नहीं है, इसलिए यह टहनी रखता हूँ।" वह परिव्राजक सात विद्याओं में निपुण था(१) वृश्चिकी (4) मृगी (2) सार्की (5) वराही (3) मूषकी. . (7) सउलिया (शकुनिका-चील) १-उत्तराध्ययन, 20123 ; सखबोधा, पत्र 269 / २-उत्तराध्ययन, 20122 ; सुखबोधा, पत्र 269 / ३-बृहद्वृत्ति, पत्र 462 : केनचिद् भिषजा व्याघ्रस्य चक्षुरुद्घाटितमटव्याम् / ४-वही, पत्र 475 / ५-वही, पत्र 11 / ६-उत्तराध्ययन नियुक्ति, 173 / (6) काकी