Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 454 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन (7) जो अनासक्त है, (8) जो गृहत्यागी है, (8) जो अकिंचन है, (10) जो गृहस्थों में अनासक्त है और (11) जो समस्त कर्मों से मुक्त है, वह ब्राह्मण कहलाता है। धम्मपद तथा सुत्तनिपात के अनुसार ब्राह्मण (1) जिसके पार, अपार और पारापार नहीं है, जो निर्भय है, जो अनासक्त है, . (2) जो ध्यानी है, निर्मल है, आसनबद्ध है. उत्तमार्थी है, (3) जो पाप-कर्म से विरत है, (4) जो सुसंवृत है, (5) जो सत्यवादी है, धर्मनिष्ठ है, (6) जो पंशुकूल (फटे चीथड़ों से बना चीवर) को धारण करता है, (7) जो कुबला, पतला और बसों से मढे शरीर वाला है, (5) जो अकिंचन है, त्यागी है, (E) जो संग और आसक्ति से विरत है, (10) जो प्रबुद्ध है, जो क्षमाशील है, जो जितेन्द्रिय है, (11) जो चरम शरीरी है, (12) जो मेधावी है, मार्ग-अमार्ग को जानता है, (13) जो संसर्ग-रहित है, अल्पेच्छ है, (14) जो अहिंसक है, अविरोधी है, जो सत्यवादी है, जो अचौर्यव्रती है, जो अतृष्ण है, जो निःसंशय है, जो पवित्र है, जी अनुस्रोतनामी है, जो निःक्लेश है, जो प्राणियों की च्युति और उत्पत्ति को जानता है और (15) जो क्षीणाश्रव है, अर्हत् है, जिसके पूर्व, पश्चात् और मध्य में कुछ नहीं है, जो सम्पूर्ण ज्ञानी है-वह ब्राह्मण है। महाभारत के अनुसार ब्राह्मण (1) जो लोगों के बीच रहता हुआ भी असंग होने के कारण सूना रहता है, (2) जो जिस किसी वस्तु से अपना शरीर ढंक लेता है, (3) जो रूखा-सूखा खा कर भी भूख मिटा लेता है, . (4) जो जहाँ कहीं भी सो रहता है,