Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 527
________________ 468 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन . 45. किल्विषिकी भावना (36 / 265) नाणस केवलीणं धम्मायरियल्स संघताहूगं / माई अवग्णवाई किम्बिसियं भावणं कुणइ // 'शान, केवलज्ञानी, धर्माचार्य, संघ और साधुओं की निन्दा करना, माया करनाकिल्विषिकी भावना है।' 46. आसुरी भावना (36 / 266) मणुबरोसपसरो तह य निमित्तंमि होइ पडिसेवि। एएहि कारणेहिं मासुरियं भावणं कुणह // 'क्रोध को बढ़ावा देना, निमित्त बताना-आसुरी भावना है।'. 47. मोही भावना (36 / 267) सत्यग्गहणं विसमक्खणं च जलणं च जलप्पवेसो य। ___ अणायारमण्डसेवा जम्मणमरणाणि बन्धन्ति // 'शास्त्र या विष-भक्षण के द्वारा, अग्नि में प्रविष्ट होकर या पानी में कूद कर आत्म-हत्या करना, मर्यादा से अधिक उपकरण रखना-मोही भावना है।'

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