Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 502 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन आयाणहेउं अभिणिक्खमाहि / 13320 मुक्ति के लिए अभिनिष्क्रमण करो। कत्तारमेवं अणुजाइ कम्मं / 13123 कर्म कर्ता के पीछे दौड़ता है। मा कासि कम्माइं महालयाई / 13126 असद् कर्म मत करो। वेया अहीया न भवन्ति ताणं / 14.12 वेद पढ़ने पर भी त्राण नहीं होते / धणेण किं धम्मधुराहिगारे। 14.17 धन से धर्म की गाड़ी कब चलती है ? अभयदाया भवाहि य / 18 / 11 अभय का दान दो। अणिच्चे जीव लोगम्मि किं हिंसाए पसज्जसि / 18 / 11 . यह संसार अनित्य है, फिर क्यों हिंसा में आसक्त होते हो ! पडन्ति नरए घोरे जे नरा पावकारिणो। 18025 पाप करने वाला घोर नरक में जाता है। दिव्वं च गई गच्छन्ति चरित्ता धम्ममारियं / 18025 धर्म करने वाला दिव्य गति में जाता है। चइत्ताणं इमं देहं गन्तव्वमवसस्स मे 19.16 __ इस शरीर को छोड़ कर एक दिन निश्चित ही चले जाना है। निम्ममत्तं सुदुक्करं। 19 / 29 ___ ममत्व का त्याग करना सरल नहीं है। जवा लोहमया चेव चावेयव्वा सुदुक्करं / 19 / 38 साधुत्व क्या है, लोहे के चने चबाना है। इह लोए निम्पिवासस्स नत्थि किंचि वि दुक्करं / 19 / 44 ___ उसके लिए कुछ भी दुःसाध्य नहीं है, जिसकी प्यास बुझ चुकी हैं। पडिकम्मं को कुणई अरण्णे मियपक्खिणं ? 1976 जंगली जानवरों व पक्षियों की परिचर्या कौन करता है ? वियाणिया दुक्खविवद्धणं धणं / 1998 धन दुःख बढ़ाने वाला है। माणुस्सं खु सुदुल्लहं / 20311 मनुष्य जीवन बहुत मूल्यवान् है /