Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 526
________________ 467 खण्ड 2, प्रकरण : 10 परिभाषा-पद 39. वैयावृत्त्य (30 / 33) . . आयरियमाइयम्मि य वेयावच्चम्मि दसविहे / आसेवणं . जहाथाम वेयावच्चं तमाहियं // 'आचार्य आदि सम्बन्धी दस प्रकार के वैयावृत्त्य का यथाशक्ति आसेवन करने को वैयावृत्त्य कहा जाता है।' 40. व्युत्सर्ग (30 / 36) सयणासणठाणे वा जे उ भिक्खू न वावरे / कायस्स विउस्सग्गो छ8ो सो परिकित्तिओ // 'सोने, बैठने या खड़े रहने के समय जो भिक्षु व्याप्त नहीं होता ( काया को नहीं हिलाता-डुलाता ) उसके काया की चेष्टा का जो परित्याग होता है, उसे व्युत्सर्ग कहा जाता है / वह आभ्यन्तर ता का छठा प्रकार है।' 41 लोक (36 / 2) जीवा चेव अजीवा य एस लोए वियाहिए। ___ 'जो जीव और अजीवमय है, वह लोक है।' 42. अलोक (36 / 2) अजीवदेसमागासे अलोए से वियाहिए। 'जो अजीव आकाशमय है, वह अलोक है।' 43. कन्दी भावना (36 / 263) कन्दप्पकोक्कुइयाई तह सोलसहावहासविगहाहिं। . विम्हावेन्तो य परं कन्दप्पं भावणं कुणइ // . . 'काम-कथा करना, हंसी-मजाक करना, शील, स्वभाव, हास्य और विकथाओं के द्वारा दूसरों को विस्मित करना-कन्दी भावना है।' 44. आभियोगी भावना (36 / 264) मन्ताजोगं काउं भूईकम्मं च जे पउंजन्ति / सायरसइडिढहेउं अभिओगं भावणं कुणइ // ... 'सुख, रस और समृद्धि के लिए मंत्र, योग और भूति-कर्म का प्रयोग करना आभियोगी भावना है।

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