Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
View full book text
________________ 478 . उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन 4 / 5 दीवप्पणढे टीकाकार ने इसके दो संस्कृत रूपान्तर दिए हैं-'प्रणष्टदीपः' और 'दीपप्रणष्ट:'। प्राकृत व्याकरण के अनुसार पूर्वापरनिपात की व्यवस्था होने के कारण पहला रूप निष्पन्न होता है और 'आहितान्यादेः' इस सूत्र से दूसरा रूप। (212) 1 / 3 अंतेउरवरगओ यहाँ प्राकृत व्याकरण के अनुसार 'वर' शब्द का पूर्वनिपात किया गया है / संस्कृत में इसका रूप 'वरान्तःपुरगतः' होगा / (306). 12 / 42 जन्नसिटुं टीकाकार ने इसका संस्कृत रूप 'श्रेष्ठयज्ञ' दिया है / (372) 1313 चित्तवणप्पभूयं यह प्राकृत प्रयोग है / संस्कृत के अनुसार 'पभूय' का प्रागनिपात करने पर इसका रुप 'प्रभूतचित्रधनं' होगा। (386) / 14 / 10 पज्जलणाहिएणं संस्कृत में इसके दो रुप बनते हैं-'प्रज्वलनाधिकेन' और 'अधिकप्रज्वलनेन' / (369) 14 / 41 संताणछिन्ना इसका संस्कृत रूप 'छिन्नसन्तानाः' होगा। (409) 14 / 41 परिग्गाहारम्भनियत्तदोसा प्राकृत के अनुसार 'दोस' शब्द का पूर्वनिपात किया गया है। इसका संस्कृत रूप 'परिग्रहारम्भदोषनिवृत्ताः' होगा। (406) 14 / 52 भावणभाविया इसके संस्कृत रूपान्तर दो होंगे भावनाभाविताः अथवा भावितभावना। (412) 15 / 1 नियाणछिन्ने इसके संस्कृत रूपान्तर दो होंगे निदानछिन्नः अथवा छिन्ननिदानः / (414) १६।सूत्र 1 संयमबहुले - इसके संस्कृत रूपान्तर दो होंगे संयमबहुल: अथवा बहुलसंयमः / (423)